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मैं किस दुःख में पड़ा हुआ हूंँ
जिस दलदल में खड़ा हुआ हूंँ
.
औरों को तो छला नहीं है
अपनों से क्यों छला हुआ हूँ
.
यारी पर इतना गुमान जब
किस शुब्हा में पड़ा हुआ हूंँ
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बेनामी दस्तावेज़ों पर
मोहर बन कर जड़ा हुआ हूँ
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किस पहाड़ को क़ब्र बनाने
मैं सदियों से अड़ा हुआ हूँ
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अह्ले सियासत चालू नाटक
किरदारों का ठगा हुआ हूंँ
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मैं भी ख़ौफ़ज़दा मंज़र में
तो ना थोड़ा डरा हुआ हूंँ
.
बड़ी देर तक सदमे में था
अभी होश में ज़रा हुआ हूँ
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इश्क़ किया तो यूँ मर बैठे
आज तलक जो मरा हुआ हूँ।
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वो हमसे नाराज़ बहुत हैं
इतना क्यों दिलजला हुआ हूँ
.
यूँ ही जिस्म नहीं ये साथी
बदवक़्तों से लड़ा हुआ हूँ
*
गंगेश गुंजन
#उचितवक्ताडेस्क।
Wednesday, May 4, 2022
मैं किस दुःखमें में पड़ा हुआ हूंँ : ग़ज़ल नुमा
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