🛖
कबीर हो गया हो जो उसको,
सूर-तुलसी भी क्या याद रहें । .
रोक कर झुकने से फ़ितरत ने बचा रक्खा
इस दौर में तो बिछ कर क़ालीन हुए होते।
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फूलों को पतझड़ से कुछ डर नहीं लगता
उत्सव,बुके,नेताओं से रहते हैं तबाह।
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रहा उपकार मुझ पर ये भी उसका
मरे जिसके लिए ताउम्र पल-पल।
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रौशनी है आँख में पर दिख रहा है कुछ नहीं।
आह किस अंधे समय के हो रहे हैं हम गवाह।
गंगेश गुंजन
#उचितवक्ताडेस्क।
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