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इन्सान ने चाहा कहाँ अनगिन बरस जीये जितना जिये उतना तो आराम से जीये। कोई तो हो सूरत कुछ ऐसा इन्तज़ाम है आदमी तो आदमी रह कर मरे-जीये ।
गंगेश गुंजन #उचितवक्ताडेस्क।
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