रचना से आलोचना-आचरण तक आदर्श, कहीं न कहीं एक नैतिकता से जुड़ा तो होता है लेकिन प्रायोजित नहीं रहता। इस धारणा की उम्र अब समाज में शेष प्राय है क्या ?
गंगेश गुंजन
#उचितवक्ताडेस्क।
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