पृथ्वी गुड़का रहलि स्त्री !
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पुरुख कहि-कहि क'रहैए
स्त्री सहि-सहि क' रहैए।
पुरुष बहुत कम रहैए
स्त्री बेसी सं बेसी रहैए।
किछु पुरुष किछु ने सहैए
स्त्री एक टा शब्द सं ढहि जाइए
स्त्री आखिरी बेर किछु ने सहैए।
नहि रह' देबै,स्त्री तैयो रह' दैए।
पुरुष हर बरद, गाड़ी घोड़ा हांकि सकैए
स्त्रीक मूड भेलै तं पृथ्वी के नचा दैए।
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गंगेश गुंजन।
२७.१२.'२०.
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