रोज़ नहीं होती कविता
दिनचर्या की तरह कविता रोज़ नहीं लिखी जा सकती है।छन्दोबद्ध कविता तो और भी नहीं। डायरी और निर्वस्त्र विचार के सिवा यों तो सुस्वादु सुपाच्य गद्य भी नहीं लिखा जा सकता।
हां कोई पहला ड्राफ़्ट तो शौचालय में भी किया जा सकता है।
गंगेश गुंजन
#उचितवक्ताडेस्क।
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