ग़ज़ल >>>>>>>
पिछली रुत की बात करे वो फूलों की बरसात करे वो।
वक़्त बड़ा मनहूस सामने ढल जाने की रात करे वो।
यही करिश्मा तो है उसका सहरा भी सौग़ात करे वो
किस सुकून से ठहरे मन को सैलाबी जज़्बात करे वो।
उथल-पुथल की दुनियादारी सड़ी सियासी बात करे वो।
सहर ख़ुशनुमा याद आ गयी। ख़िज़ां मिरी बरसात करे वो।
गंगेश गुंजन
#उचितवक्ताडेस्क।
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