Monday, March 12, 2018

मन‌ का : यह-वह !

-१-
बड़े लोगों में इज़्जत और खुशामद में भेद करने का विवेक बहुत ही दुर्लभ है।कदाचित इसीलिए,समाज में मनुष्य बड़ा तो हो जाता है,उसमें मानवीय श्रेष्ठता तो आ जाती है परंतु अपने प्रति,अपने कार्यों के प्रति समाज से मिलने वाले सम्मान और खुशामद में अंतर समझने का विवेक नहीं रहने के कारण वह श्रेण्य अथवा ऐतिहासिक व्यक्ति नहीं बन पाता।जबकि उसके सामाजिक लक्ष्य और कार्य में ऐसा होने के सभी गुण और तत्व पूरी तरह विद्यमान रहते हैं। साधारण भाषा में हम जिसे ‘कान के पक्के’ और ‘कान के कच्चे’ कहा कहते हैं। इंसान की भाषा और भंगिमा में उसकी तात्कालिक आंतरिक नियत का आईना होती है जिसमें संबोधित हो रहा व्यक्ति अपनी आकृति को ठीक से देख और पहचान सकता है। जो उससे अक्सर छूट जाता है और आत्म मुग्ध होकर वह खुशामद को भी अपने प्रति आदर समझे बैठा रहता है। आज भी समाज में खुशामद तो आम है क्योंकि अधिकतर लोग ख़ुशामदी हैं। निस्पृह और निस्वार्थ सराहना या आदर प्रकट करने वाले
बहुत कम।
 अपने इर्द-गिर्द परिवेश में आपके बड़प्पन के लिए, व्यक्तित्व की विशेषता के इर्द-गिर्द, जैसी नीयत से जो भाषा-व्यवहार सक्रिय है उसकी वास्तविक पहचान और पकड़ रखिए,नहीं तो आपकी विशिष्टता भी खतरे में ही रहेगी और आपकी वास्तविक सफलता संदेह के घेरे में। ध्यान रहे।
*
-२-
आप जब कुछ याद करते हैं तो कुछ भूलते हैं ।भूलना और याद करना एक साथ संभव नहीं है। घृणा आती है तो प्रेम चला जाता है।अर्थात बिना प्रेम को विदा किए हुये घृणा आ ही नहीं सकती। प्रेम भी इसी तरह।
     आप प्रेम याद करते हैं तो उसी तरह घृणा हो छूटती है। ऐसा नही कि इन दोनोंं में किसी एक के होने पर दूसरा खत्म हो जाता है । नहीं वह साथ तब रहती है लेकिन निष्क्रिय रहती हैं ।सक्रियता जीवन का मुख्य धर्म है। निष्क्रियता की समाप्ति पर ही सक्रियता आरंभ होती है। सभी निष्क्रियता निष्क्रिय नहीं होती जैसे सोते समय आप सांसारिक दृष्टि से निष्क्रिय रहते हैं यह तो शरीर को आवश्यक विश्राम है जो अपनी दैहिक प्रक्रिया में आपकी ऊर्जा का संचयन कर रहा होता है । उसी तरह जब आप सक्रिय होते हैं तब भी कुछ मर्तवा आप सक्रिय नहीं होते यदि आप फालतू में पानी पर डंडे चला रहे होते हैं। निरर्थक और अनुत्पादक क्रियाशीलता।
    हालांकि सोना भी जागने से कम आवश्यक  नहीं है।
    जैसा कहते हैं, जब आप रात में रहेंगे तो आपका दिन छूट चुका होगा। जैसे प्रेम में होंगे तो घृणा अनुपस्थित हो जाएगी।
    कहना यह हुआ कि आपकी प्राथमिकता क्या है।
प्रेम घृणा ?

-गंगेश गुंजन। १३.०३.’१८

No comments:

Post a Comment