| 📕 |
बहस किस बात पर हो सो भी अब तक तय नहीं है
वही बेजान मुद्दोंका ज़ख़ीरा है,सब वहीं है।
•
नया दु:ख है न एहसासातमें कुछ ताज़गी है
है तो उनके हितों के गह्वरों में ही कहीं है।
•
घिसे लहजे पस्त तेवर में हकलाते हुए बोल
ज़ुबाँ से बास आये ज़रा भी तो रस नहीं है।
•
सजे हैं हाथ उनके बहुत दामी बुकेओं से
ग़ौर से देखिए महसूसिये ख़ुशबू नहीं है।
•
चीख़कर भी बग़ावत उठ्ठे तो आये न यक़ीन
गुमां पुतले का हो इन्सान का लगता नहीं है
•
झूठ मक्कारियाँ देखे हैं हमने इस क़दर कि
कोई मंदिरमें भी बोलेतो सच लगता नहीं है
•
सिले लब पर न क्यूँ हैरत हो ऐसे वक़्तों में
हुआ क्या अब तो गुंजन भी वो लगता नहीं है।
| 📕 |
••
गंगेश गुंजन #उचितवक्ताडेस्क।
No comments:
Post a Comment