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अक्सर उसी की बात से नाराज़गी हुई
पलभर गुज़ारना था जिसके बिना मुहाल।
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कम्बख़्त ज़िन्दगी का क्या कोई भरोसा
किस जगह साथ छोड़ दे रस्ते में बदहाल।
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हर बार बदलने के दिन पास लगे हैं
हर बार,अबर भी है वहीं खड़ा बहरहाल।
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छूटी न सियासत से बेदाग़ कोई शै
हैरत क्या जो अबर इश्क़ ने करा कमाल।
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अब आके समझ का मिरा आया जो ज़रा वक़्त
अब ज़िन्दगी से इश्क़ का घेरे नया जंजाल
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कुछ चाहना,पा लेना कोई पाप तो नहीं
कोहराम क्यों मचा हम पर हो गया बवाल।
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उसको पसन्द रंगत उसको लगे है रूप
अब रूह कौन पूछे बेकार का सवाल।
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चाहें तो घूम आएँ अहले जहान लोग
गुंजन को वतन तक न लौटने का मलाल।
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गंगेश गुंजन #उचितवक्ताडेस्क।
Wednesday, February 15, 2023
ग़ज़लनुमा : अक्सर उसी की बात से नाराज़गी हुई
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