🌱🌱 कुछेक दुपँतियाँ 🌱🌱
दु:ख से दोस्ती जो कर ली जल गया सुख भागता आया। .
तमाम ज़िन्दगी की तीरगी।
सामने एक जुगनू उम्मीद।
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यह जीवन इतना भर अपना।
रिश्तों का अनुदान रह गया ।
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सुबह रफ्त़ार से यूंँ आई।
रात चुपचाप घर से भागी।
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ज़िन्दगी से डर गये तुम भी।
रास्ते में ठहर गये तुम भी ।
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यों मुकम्मल नहीं होता।
पत्थरों से हल नहीं होता।
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उनकी बावस्तगी भी न रही ।
और हम भी अब कहांँ जाते ! 🌱🌱🌱🌱🌱🌱🌱🌱🌱🌱🌱
गंगेश गुंजन
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#उचितवक्ताडेस्क।
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