❄️!❄️ ख़ुशफ़हमी के इलाक़े •
कवि ही नहीं,बहुत से आलोचक और विद्वानों को भी अक्सर यह ख़ुशफ़हमी रहती है कि वे सर्वथा मौलिक और महान लिख और कह रहे हैं।
स्वाभाविक है।वे क्या समाज से बाहर हैं?
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गंगेश गुंजन
#उचितवक्ताडे.
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