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रखने भर अपनापन कर
जो कर सच्चे दिल से कर।
•
बहुतेरे उलझे मसले
मत ओछे मसलों पे मर।
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कर मुमकिन अपनी हसरत
क़त्ल मिरा क्यूँ कर के कर।
•
बेशक़ कर बादशा'ही
मेरी ख़ुद्दारी से डर।
•
तय है उम्र सभी की तो
समझ इसे क़ुदरत के घर।
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हो जो हो अब दो-दो हाथ
कस ली है लोगों ने कमर।
•
नींद अवामकी नाज़ुक़ है
इसके जग जाने से डर।
• ❄️❄️❄️❄️❄️❄️❄️❄️❄️❄️❄️ गंगेश गुंजन #उचितवक्ताडेस्क। रचना ८जुलाई,२०२३.
Saturday, July 8, 2023
ग़़ज़लनुमा : रखने भर अपनापन कर
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