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कुछ ग़म के फ़साने थे
कुछ खुशी के गाने थे।
नक़ली हुए अब हम तो
सच्चे थे अजाने थे।
लगते थे सभी अपने
सब कुछ ही सुहाने थे।
प्यारे थे मगर कितने
अपने जो बहाने थे ।
अक्षर लिखे जतन से
जब उसको पढ़ाने थे।
मिलजुल के सभी सुन्दर
जीवन के तराने थे।
उसकी सदा भी आए
मेरे भी बुलाने थे।
मैं ही नहीं अकेला
सब यार दीवाने थे।
जाने वो कौन शम्मा
जिसके कि परवाने थे।
सब दफ़्न किताबों में
एक उम्र ज़माने थे।
हैरत में क्यूँ हैं गुंजन
बनते तो सयाने थे।
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गंगेश गुंजन #उचितवक्ताडेस्क।
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