निरीह है दु:ख !
मामूली से मामूली सुख बड़े से बड़े दु:ख को पकने ही नहीं देता उसको सयाना होने ही नहीं देता है। दु:ख को अपना दास बना कर रखता है। तिस पर भी हम हैं कि बेचारे दु:ख को ही कोसते रहते हैं।
गंगेश गुंजन #उचितवक्ताडेस्क।
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