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उसको गर पर्वाह नहीं है तू भी
कुछ पर्वाह न कर
जाने दे रिश्ता सब ऐसा भूले से
भी निबाह न कर।
दौलत-दौलत खेल चला है जीवन
के बाज़ारों में
शामिल होगा और जीतेगा तू
फ़िज़ूल की चाह न कर।
करने दे करने वालों को क़त्लों पर
भी जयकारे
इन्सानी निस्बत से ऐ दिल मत हो
शामिल वाह न कर।
छुपा-सजा कर ख़ाब बचा रक्खे हैं
काले सायों से
थोड़ी सी हिम्मत कर और, बचा के
रख,तबाह न कर।
क्यों लगता हूँ कभी-कभी मैं भी
झूठे अख़बारों में
अबभी सूखे पेड़ नहीं हैं,हमको तो
अफ़वाह न कर।
गाना रोना एक बराबर लगता है
इस मंज़र में
हो पड़ोस पर शुबहा,लेकिन सब
पर शक्की निगाह न कर।
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गंगेश गुंजन #उचितवक्ताडेस्क।
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