Monday, March 14, 2022

रहनुमा पर कर लिया फिर ऐतबार: ग़ज़ल नुमा

  रहनुमा पर कर लिया फिर ऐतबार  
     अग़र्चे खाये हैं धोखे बार-बार।

   मेज़ पर तैयार बिरियानी हैं हम
  हमीं तो हैं उसके आसाँ से शिकार

  वो भी है और वो भी है,और वो भी
  हर महक़मा,ज़्यादा अफ़सर मक्कार

  जा रहाथा इक फटेहाल किस तरफ
  कह रहे थे सब उसे आज़ाद प्यार।

    समन्दर लहरा रहा है ख़ौफ़ का
    जंग बरपा है जहां में ख़ूंँख़्वार

     आदमी को ढूँढ़ता है आदमी
  इस न उस का सभी को है इन्तज़ार

    एक गुंजन भी खड़े हैं गाँव में
 कारवाँ निकले इधर से अबकी बार
                       ..                                                  गंगेश गुंजन
            #उचितवक्ताडेस्क।

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