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* विश्व रंगमंच दिवस*
घर रंगमञ्च की सब से छोटी
इकाई है और परिवार अभिमञ्चित
-सम्पूर्ण नाटक।
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#उचितवक्ताडेस्क।
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आज विश्व रंगमंच दिवस पर
विशेष भेंट:
दो पात्रीय संवाद-नाट्य।
।। दृश्य :एक मात्र ।।
[चारों ओर से बंद ड्राइंग रूम में
क़ैदीनुमा बैठे आमने-सामने दो
लोग। १.बेचैन बुज़ुर्ग और २.
बेफ़िक्र युवक।यानी दादा-पोता ]
*
(बहुत व्याकुलता से,खीझ और
गुस्से में) :
दादा : पता नहीं यह अभागा
कब जायेगा यहांँ से।
पोता : यह कोई जिस्म का फोड़ा
नहीं ना है दादू कि एक-दो बारी
मरहम लगा देने से चला जाये।
आप परेशान बहुत होते हो ? चला
जाएगा न।
दादा : अरे मगर कब जाएगा ?
चला जाएगा।
(और भी ज़्यादा ग़ुस्साते और ख़ीझते)।
पोता: जाएगा न। वीसा ख़त्म
होते ही चला जाएगा।
(इत्मीनान से मुस्कुराते हुए )...
दादा: अब इसका वीसा से क्या
मतलब है?(चिढ़ कर)
पोता : है न दादू। यह इम्पोर्टेड
बीमारी है। जानते ही हो। लेकिन
कोई नहीं। (कुछ याद करने का
अभिनय करते हुए) आपके
ज़माने में वो एक गाना बड़ा सुपर
डुपर हिट हुआ था न ?
दादा: (बे मन से,उदासीन भाव से) कौन-सा गाना ?
पोता : जाएगा-आ-आ जाएगा
-आ-आ जाएगा जाने वाला,
जाएगा-आ-आ....
दादा : अरे वह आयेगा-आयेगा
था। जायेगा जायेगा नहीं... ।
(तनिक सहज होते हुए गाना
सुधार कर सही किया तो पोते ने
मुस्कराते हुए कहा-)
पोता: मालूम है दादू। मगर अब
आपका आयेगा वाला सीन-
सिक्वेंस तो बदल गया है न। यह
तो जाएगा-जाएगा वाला है।
(कहते हुए काल्पनिक गिटार
छेड़ता है और बड़ी अदा से तरन्नुम
में गाने लगता है-'जाएगा जायेगा
जायेगा जाने वाला जायेगा।पोते
की इस हरकत पर: )
दादा: बहुत शैतान हो गया है
तू ...रुक। ( थप्पड़ दिखा कर
उसकी ओर लपकने लगते हैं
लेकिन पोता गाते-गाते ही
ड्राइंगरूम का पर्दा समेटने लगता
है।सामने बाल्कनी दीखने लगता
है। सचमुच में गिटार की कोई
मीठी धुन सुनाई पड़ती है। )
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🦚 #उचितवक्ताडेस्क प्रस्तुति 🦚
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