जो भी लिखना दिखकर लिखना
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भूले से मत छुपकर लिखना
जो भी लिखना दिखकर लिखना
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नहीं जरूरत तो चुप रहना
काम पड़े तो ज़ोर चीख़ना ।
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रहने लायक रहे तो अच्छा
नहीं मिले तो कभी न रहना।
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कितना कुछ सह गये उम्र भर
अब लेकिन कुछ भी मत सहना
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मुश्किल क्या कि दरिया हो ही
ख़्वाब और ख़़याल में बहना
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तुम तो हो मज़बूत इमारत
बालू के घर-सा मत ढहना।
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संदेशा कहने में उसको
हकलाना मत खुलकर कहना।
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गंगेश गुंजन,
१८नवंबर,’१८.
Sunday, November 18, 2018
जो भी लिखना दिखकर लिखना
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