🌖 समाज में कोई तीसरा नव यथार्थ
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अच्छे-अच्छे लोग भी इस परिस्थिति को समझ नहीं पा रहे हैं या अपनी पूर्वग्रही अकड़ में आँखें बन्द किए हुए हैं ? जन जीवन असमानता की एक नयी तबाही की जटिल दिशा में तेज़ी से बढ़ रहा है ।
आज के लोकतंत्र को नया पाठ तो
दरकार नहीं ?
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गंगेश गुंजन #उचितवक्ताडेस्क। १८.०४.'२२.
Tuesday, December 10, 2024
समाज में एक तीसरा नव यथार्थ !
Sunday, December 8, 2024
'चाँद निकलेगा मगर हम न उधर देखेंगे '
🌜 ‘चांँद निकलेगा मगर हम ना उधर देखेंगे’
हमारे ज़माने के फिल्मी गाने भी कमाल के होते थे।एक गाना बहुत चला था ‘चांँद निकलेगा मगर हम न उधर देखेंगे।’
जहाँ तक ध्यान है फ़िल्म में बहुत अच्छी मीना कुमारी टाइप अभिनेत्री ने गाया था। उस वक्त फिल्म में ऐसे रूठे हुए दर्दीले गाने नायक और नायक दोनों ही गाया करते थे। कभी तो बम्बई और दिल्ली में एक साथ और कभी अकेले-अकेले।
यह तब का अपने आप में एक लोकप्रिय तकनीकी हुनर था।
लेकिन यह गीत ‘चांँद निकलेगा मगर हम न उधर देखेंगे’ जो गाया गया था उसके अंजाम भी अजीबो ग़रीब आते रहते थे अखबार से लेकर दिलदार महफ़िलों के शगूफ़ों तक पर चढ़ के… मेरे ही सहपाठी,साथियों के साथ कुछ कुछ ऐसा गुजरात कि याद करके आज भी दिल भर आता है।
तो उस वक़्त भी और आज तक ‘चांँद’ का तो खैर कुछ नहीं बिगड़ा लेकिन चाँद को नहीं देखने वाले की जिद ने उनको कहीं का नहीं छोड़ा। कुछ एक जो बच निकले पता नहीं वह क्या होकर किस तरफ़ निकले।क़िस्मत से कुछ और भी बच गये हों तो प्रभु ही जानें आजकल किस हाल में हैं... 🌛
गंगेश गुंजन
#उचितवक्ताडेस्क।
Friday, December 6, 2024
झूठ: एक उत्पाद !
🌎। झूठ : एक उत्पाद !
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झूठ एक वैश्विक उत्पाद है।लोग खुले दिल से अपनी-अपनी पसन्द का ब्राण्ड इस्तेमाल कर रहे हैं। अपने यहांँ आजकल यह माल इतना लोकप्रिय है कि सब्ज़ी मसाले की तरह प्रायः सब की रसोई में व्याप्त है। क्या राजनीति,क्या सामाजिक-कार्य,क्या धार्मिक या साहित्य,कला और संस्कृति-कर्म,पत्रकारिता ! और क्या आभासी प्रबौद्धिक उपक्रमों के क्षेत्र !
अर्थ तो इन सभी का जनक ही ठहरा।
।🌓।
गंगेश गुंजन
#उचितवक्ताडेस्क।
Tuesday, December 3, 2024
'शब्दकोश : अभी बचा है एक चरित्र धान !
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‘शब्दकोश : अभी बचा है एक चरित्रवान!'
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एक मात्र शब्दकोष अब समाज में यथार्थ बचा है। वह निष्पक्ष,तटस्थ,प्रकृतिस्थ बच गया है जो गहरे विशाल समुद्र के समान शान्त रहता है।पूछिए तो ही उचित बतलाता है। उसके हृदयांगन में आदरपूर्वक क़रीने से अपने आधिकारिक क्रम से सभी गुण,सभी भाव, धर्म,समस्त विचार के उदात्त और अवदात्त शब्द समान आसन पर बैठे रहते हैं। सत्य और झूठ अपने स्थान पर कायम हैं। तथाकथित सामाजिक सभ्य-असभ्य,श्लील-अश्लील शब्द अपनी बारी में समान अधिकार से उपस्थित रहते हैं।किसी से किसी को घृणा नहीं द्वेष या वैर नहीं। दुराव छुपाव नहीं। राग द्वेष सब समान। आप इसी से सोचें कि राग-द्वेष शब्द विधिवत् होने के बाववजूद यहाँ कोई आपसी वैमनस्य नहीं है। एक व्यवस्था है। सबको मान्य है। जाने कब से सक्रिय शान्त चलती जा रही है।स्टेशनों पर रेल गाड़ी में चढ़ते-उतरते यात्रियों की तरह ही नये शब्द चढ़ते रहते हैं।अपनी अपनी सीट पर इत्मीनान से बैठ जाते हैं।
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गंगेश गुंजन
#उचितक्ताडेस्क।
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