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लोकतंत्रका महासमर है अबकी बार
कौन किधर है पता कहाँ है अबकी बार।
पहले से ही 'जाति न पूछो साधू'-संकट
ज़्यादा और धुआँ छाया है अबकी बार ।
छुपे एजेंडे हैं तैयार प्रलोभन के
दीन हीन दिग्भ्रमित बुद्धि,जन अबकी बार।
विजय पताका सजे-धजे सब दोनों ओर
दोनों तरफ़ हतप्रभ जनता अबकी बार।
वोटतंत्र की लोकतंत्र की अबके जाँच
धुंध दिमाग़ों वाली जनता अबकी बार ।
चारो तरफ घुमड़ता मंज़र सोच में है
बिखरी अपनीही पहचानें अबकी बार।
रोटी-शिक्षा-स्वास्थ्य सड़क से भी ऊपर
सब के आगे जात धरम है अबकी बार।
सोच,सेहत से जाग्रत-मन लोगों के भी
क्यूंँ विचार हैं कुंद वोट में अबकी बार।
'पंचन की सब बात मेरे सिर-आँखिन पर,
खूंँटा लेकिन इहैं गड़ी' है अबकी बार।
चैनेल हकलाये - बौराये - से अखबार
दोहरे - तिहरे बोलों वाले अबकी बार।
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गंगेश गुंजन #उचितवक्ताडेस्क।
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