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कुछ भर मेरे मन में था
बाक़ी सब दर्पण में था।
मेरा मैं तब सुन्दर था
वो जब कभी नमन में था।
चलते-फिरते कहाँ मिला
जो एकान्त मगन में था।
उसका ही था कॉपी राइट
पहले मिरे छुअन में था।
सुख का अपना होगा स्वाद
दु:ख भी किसी सहन में था।
नया - वया सब भ्रम ही है
जो था प्रथम मिलन में था।
अरुणिम अधर क्षितिज पर जो
उषा-मृदुल चुम्बन में था।
।📕।
गंगेश गुंजन #उचितवक्ताडेस्क।
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