Tuesday, September 19, 2023

ग़ज़लनुमा : दरिया की तो थी कुछ और

                 •📔•
  दरिया की तो थी कुछ और
साहिल की फ़ितरत कुछ और।

  पांँवों में लिपटी राहों की,
क़दमों की क़िस्मत कुछ और।

  बदकारी के अपने जलवे
सहकारी हिम्मत कुछ और।

  बर्पा थी बदनामी ऊपर
सच को थी ज़िल्लत कुछ और।

  मंज़िल मिल जाने की अपनी
दिक़्कत रहगुज़री कुछ और।

  ख़ासी थीं वो बदक़िस्मतियाँ
पर ख़ुशक़िस्मत की कुछ और।

  कोरे काग़ज़ का काग़ज था
लिखी इबारत की कुछ और।

  कामयाब क़िस्से की अपनी
नाकामे हसरत कुछ और।

  लिखे रह गये बार-बार ख़त
मिलने की क़ुदरत कुछ और।

  उपजाते अनाज खेतों की
इन्साँ की मिहनत कुछ और।

  ज़ंजीरों की अपनी ताक़त
बाज़ू की ताक़त कुछ और।
                  ।📔।                                           गंगेश गुंजन।                                    #उचितवक्ताडेस्क।

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