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मई दिवस
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एक घूंँट प्यास का चुकाया है दाम
उम्र भर बेच बाप-दादा का नाम ।
औसत सुख के लिए बहाये हैं ख़ून
रोटी की वजह किए जल्लादी काम।
हम भी चल-चल के हारे थके बहुत
हमको भी चाहिए था दो पल विश्राम।
कौन सुने कौन छुए अपने ये घाव
जो इस जीवन ने दिए हमें ठाम-ठाम।
ज़ंजीरी सभ्यता के थे वे मोहरे
और मैं बना रहा था एक रहे आम
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गंगेश गुंजन
#उचितवक्ताडेस्क।
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