ग़ज़लनुमा
एकेक कर सामान गया। आख़िर में अरमान गया।
बे ईमान नफ़ासत मे। ज़्यादातर ईमान गया।
सारी उम्र वफ़ादारी । तिसपर भी एहसान गया।
रोगी राजनीति पर यह मुल्क कहाँ क़ुर्बान गया।
कुतरे पन्ने फटी किताब पानी में उन्वान गया।
कुछ भी होता दिखे नया आशा में नादान गया।
८/५/२०१४ गंगेश गुंजन
[उचितवक्ता डेस्क]
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