।। ग़ज़लनुमा ।।
चले चलो कोई अच्छा-सा ठिकाना ढूँढ़ें इक ऎसी ज़िन्दगी का जीना आना ढूँढ़ें।
वो तो कब के हुए रफ्त़ारे ज़माना शामिल एक तरकीब कोई हम भी सयाना ढूँढ़ें।
वो समझ बूझके ही निकला था अपनी राह भला बताओ उसे क्यूँ कहाँ-कहाँ ढूँढ़ें।
बहुत उदास है बस्ती मेरे पड़ोस में भी कोई तजबीज करें उसको हँसाना ढूँढें।
रूठ के आ भी गए गर जुनूँ कि गु़स्से में एक बार फिर से उस गली मे जाना ढूँढ़ें।
अब भी टूटा नहीं सब फिर से बन जाएगा नई ईजाद कोई नया बनाना ढूँढ़ें।
थका है जिस्म यह जीवन ऐसा चल-चल कर ज़ुबाँ थकी नहीँ अब भी नया गाना ढूँढ़ें।
मुझसे नाराज़गी इतनी उसकी वाजिब हैै चलो मनायें कि प्यारा-सा बहाना ढूँढ़ें।
झुलस रहे हैं जहां पा लें की हसरत में इक ज़रा और की निस्बत में गँवाना ढूँढ़ें।
🌳🌳
- गंगेश गुंजन, 28 दिस.2012 ई.[उचितवक्ता डेस्क]
No comments:
Post a Comment