सूर्य का अहंकार
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सूर्य बड़ा पराक्रमी और सृष्टि का परम उपकारी है परंतु जब अपने ताप के घमंड में दोपहर होकर आग बरसाने लग जाता है तो यही धरती जो उस पर निर्भर और उससे उपकृत है, धीरे-धीरे ले जाकर उसे रसातल में पहुंचा देती है। घमंडी सूरज को अंधकार में डुबो देती है। उस समय सूरज की दीनता देखने लायक होती है।
-’तुम मुझे यूं ढकेल कर अंधेरेमें क्यों डुबो रही हो?’ अस्त होते हुए निस्तेज सूरज ने बड़े दीन स्वर में धरती से पूछा।
-’तू अपने अभिमान में आग उगलने लगा था ! उसे तोड़ना ज़रूरी था मेरा बच्चा! जो बड़ा़ होता है वह अभिमानी नहीं होता। इसका ध्यान रख।’
कहती धरती मां की आंखें ओस रोने लगीं।ओस के अपने आंसुओं से सूरजको नहला कर शीतल किया और मातृत्व की अपनी शीतल रात्रि-छाया में सुलाने लगी।
अहंकार होने पर सूरज तक को धरती अपनी ओट में डुबो देती है। ध्यान रहे।
-गंगेश गुंजन
8.10.'१८.
Monday, October 8, 2018
सूर्य का अहंकार
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