ग़ज़ल
इस तरह मायूस होकर यूं न रहना चाहिए
दु:ख जो है आपको मुझसे तो कहना चाहिए
क्या शिकायत है सुनें हम भी जरा मिल बैठ लें
दोस्ती गंगा है जी भर कर नहाना चाहिए
पेड़ के नीचे दुपहरी में खड़े तनहा हैं आप
क्या है ग़म हम बंधु हैं हमको बताना चाहिए
यूं किनारे बैठकर धारा से डरना क्या हुआ
साथ लीजे अब हमें उस पार चलना चाहिए
देर से मन चुप है सन्नाटा है सब सुनसान है
वह बुलाते हैं तो गुंजन को भी जाना चाहिए।
**
गंगेश गुंजन। ( डायरी नंबर-३ १९८४ में पेन्सिल से लिखा स्वतंत्र पेज पर मिला)
No comments:
Post a Comment