Wednesday, July 2, 2025
दिल्ली के चूहे भी दारू पीते हैं
Monday, June 30, 2025
Friday, June 20, 2025
मुनासिब वक़्त का मुन्तज़िर
दुनिया का यह टाइटेनिक काल
Tuesday, June 17, 2025
कवि और डॉक्टर
युद्ध रतिरत देश
Sunday, June 15, 2025
पिता
Tuesday, June 10, 2025
प्रलेस की अध्यक्षता और प्रेमन्द
Sunday, June 8, 2025
शे'रनुमा
Friday, June 6, 2025
शे'रनुमा
Wednesday, June 4, 2025
ईश्वर और आदमी
Saturday, May 31, 2025
Friday, May 30, 2025
दिलचस्प हैं ये ख़ान सर
📕। दिलचस्प हैं ख़ान सर,
. बोले कि ‘प्रेम शब्द ही जब अधूरा है तो ‘प्रेम’ पूरा कैसे हो सकता है। प्रेम भी अधूरा है।'
‘सऽर,सृष्टि ने मुझे जो बनाकर भेजा है। उसे ही पूरा बनाने के लिए तो। प्रेम को मनुष्य ज़रूर संपूर्ण बनायेगा सर।’
किसी एकलव्य छात्र ने ख़ान सर को छूटते ही फेसबुक पर कहा।
😄 गंगेश गुंजन #उचितवक्ताडेस्क।
Thursday, May 29, 2025
महाकाल है !
Tuesday, May 27, 2025
चैट जीटीपी महाशय (Chat gpt.)
Monday, May 26, 2025
चि.शर्दू शरदिन्दु
Sunday, May 25, 2025
सत्य खेत आ जाएगा क्या
Saturday, May 24, 2025
कबड्डी खिलाड़ी एंकर !
Thursday, May 22, 2025
शे'र नुमा :
Friday, May 16, 2025
कविता का आमजन
Wednesday, May 14, 2025
भाष - कुभाष
Tuesday, May 6, 2025
अभिशापित जो हम
साहित्य और राजनीति का कुंडली-मिलान
Tuesday, April 29, 2025
दो पँतिया :
Sunday, April 27, 2025
शे'र : वह जमाने से डर गया होगा
Wednesday, April 23, 2025
अभी जो हाल है मन का
एहि आपदा काल मे
Friday, April 18, 2025
रौशनी और रास्ता दिखलाइए गुरु जी,
Thursday, April 17, 2025
ग़ज़लनुमा : मुझे अब कौन-सा मालिकोमु़ख़्तार बनना था
Saturday, April 12, 2025
कवि विमल कुमार का एकल काव्यपाठ
Friday, April 11, 2025
रंगमञ्च के सामने चुनौती
सम्प्रति,
लग रहा है कि : 'रंगमञ्च' के सामने सबसे बड़ी चुनौती-'राजनीति' ही है।
इस पर राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय समेत समस्त अभिनय-विमर्श काध्यान अवश्य ही गया होगा।अगर नहीं गया हो तो जाना चाहिए। ।🛤️।
गंगेश गुंजन #उचितवक्ताडे.
Thursday, April 10, 2025
भिखारी और भूखे
Tuesday, April 8, 2025
Thursday, April 3, 2025
......लोगों के प्रकार
Saturday, March 15, 2025
पढ़ा गया तो कभी...
Tuesday, March 11, 2025
Monday, March 10, 2025
ऐन सरस्वती पूजा दिन...
Thursday, March 6, 2025
❄️ फेसबुक पर फ्रस्ट्रेशन ❄️
Sunday, March 2, 2025
परमाण्विक युद्ध में तीर - तलवार
Wednesday, February 19, 2025
Wednesday, February 12, 2025
जीवन जूठी थाली !
जीवन जूठी थाली भर है अगले प्राणी के खाने की। बार-बार धोयी जाती है अक्सर थाली धोती है। गंगेश गुंजन। #उचितवक्ताडेस्क। 31जनवरी ‘25.
Thursday, January 30, 2025
याद आया है अपना आकाशवाणी पटना परिवार
🌻🌻
याद आया है अपना : आकाशवाणी पटना-परिवार !
▪️
आकाशवाणी पटना मेरी कर्म- जन्मस्थली है।जो कुछ रेडियो सीखा, जाना और किया सब वहीं। सो,वैसे तो कल दोपहर से ही किंतु आज अभी सुबह-सुबह एक घटना याद हो आई -गुरुजी बाबू ब्रह्मदेव नारायण सिंह की। कइयों के साथ उस पीढ़ी के इनका भी मूल्यवान साथ रहा।स्नेह-सान्निध्य का अवसर कुछ ज्यादा ही रहा। कह सकते हैं -अग्रज,मित्र सहकर्मी आदि के साथ कई बार तो उपदेशपरक और गार्जियननुमा भी।मेरे जीवन में भी कई मौके ऐसे आए जिनमें उन्होंने एक अच्छे अभिभावक जैसा साथ दिया मेरा।और मुझे भारी मानसिक परेशानी से उबरनेमें काफी आसान हुआ लेकिन यहां उन व्यक्तिगतोंका यहां जिक्र नहीं।
यहां ज़िक्र है उन एक सीनियर प्रोड्यूसर ब्रह्मदेव बाबू का।सुगम संगीत विभाग में बहुत प्रशस्त प्रोड्यूसर थे। मुख्यतः निर्गुण गायक,गौर वर्ण प्रांजल सौम्य काया सदा सफ़ेद कुर्ता पैज़ामे में यहांँ वहाँ स्वतंत्र विचरते हुए-आधुनिक कबीर दास।सब जानते थे।आज की शब्दावली में कहें तो स्टार। उस समय उनका लगभग कोई मुकाबला भी नहीं था।यों उनके प्रति यह मेरा भावनात्मक आकलन तो समझ लिया जा सकता है लेकिन यह यथार्थ है। मुझे ही नहीं अधिकतर संगीत रसिकों का मत था। मुझे उस समय देशभरके आकाशवाणी केन्द्रों में दो निर्गुण गायक बहुत श्रेष्ठ लगते थे-ब्रह्मदेव बाबू और दूसरे आकाशवाणी इन्दौर केन्द्र के प्रिय राजेंद्र शुक्ल जी।अहा क्या निर्गुण गाते थे !
अपनी यह भावना मैं बहुत आदर के साथ कई संदर्भ में बोलता भी रहा हूंँ। बहरहाल। लेकिन यहां तो प्रोड्यूसर ब्रह्मदेव जी का ज़िक्र हो रहा है। ज़्यादातर तो वे कलाकार मन के ही होते थे लेकिन कभी-कभी ऑफिसर भी हो जाते थे 😃। कमाल के।कोई- कोई प्रोड्यूसर उन दिनों अब अफ़सर भी होने लगे थे। शुरू-शुरू में तो प्रोड्यूसरों का अपने क्षेत्र के विशेषज्ञ रहने का जबरदस्त रुआब प्राप्त था।
तो प्रोड्यूसर ब्रह्मदेव जी एक दिन बैठे हुए थे। हम लोग एक दूसरे कमरे में यों भी टहल जाया करते। वह भी कभी मेरे कमरे में आ जाते कभी मैं। इस वाक़ये के वक्त मैं ही पहुँचा था। सोचा देखूँ गुरुजी जीका दफ्तर अभी कैसा चल रहा है।अफ़सर वाला कि कलाकार वाला? उनकी सेवा में हाज़िर हुआ। आप अति गंभीर मुद्रा में बैठे थे। सामने मेज पर एक दर्खास्त रखी थी। लगा कि उसी पर विचार-विचार विमर्श हो रहा था। आवेदक को छुट्टी दी जाए या नहीं दी जाए? छुट्टी के अर्जी कर्ता बहुत प्रिय और बहुत ही गुणी ख़ाँ साहब थे सम्पूर्ण हृदय से सज्जन और सुशील।आमतौर से बड़े कलाकारों की तरह उनमें ऐसी कोई अकड़ नहीं थी।अभी किनारे चुपचाप सर झुकाए खड़े थे। बहुत ही उम्दा सारंगी वादक। केन्द्र के प्रायः सर्वश्रेष्ठ सारंगी वादक। उनको तो सारंगी और बस सारंगी। किसी से कुछ लेना देना नहीं। लेकिन तब,जैसे गुणीजन होते थे वह भी उन्हीं में से थे।अपने मन और मिज़ाज के। सो इस कलाकारी मनमर्जीपन में ही आए दिन उन पर परेशानी आती रहती थी। अब जैसे- जी आया तो आएंगे।मन नहीं तो नहीं आएंँगे।
आप जानें कि एम आइ मल्लिक साहेब जैसे कड़क निदेशक दो बार उनका कांट्रैक्ट रद्द कर चुके थे।इसी से समझें। और इससे भी कि कैसे कला- दर्दी मल्लिक साहेब थे कि वही फिर उनको बुलवा भी लेते थे। मैंने सुना था। वार्निंग दी जाती थी…यह तब के समय में यह आठवें आश्चर्य जैसा ही था!तब के अचरजों में ही गिना जाता था- मल्लिक साहेब और ब्रांड कास्टिंग में ऐसी मुआफ़ी ! लेकिन हदके उन रेडियो कला के मर्मी मल्लिक साहेब को बहुत लोग जानते ही होंगे।प्रणाम और स्मरण करने योग्य हैं!
इस रुतबा के कलाकार थे वे सारंगिए जी जिनका ज़िक्र है।
अब आकाशवाणी जैसी थी उस वक्त एक भी कार्यक्रम में व्यतिक्रम होता था तो अधिकारी की खाट खड़ी हो जाती थी। ऊपर से अचानक छुट्टी ले लेने का इतिहास भी उनका भरा पूरा ही था। लेकिन वह तो ठहरे मनमर्जी के।कलाकार इतने ऊंँचे थे कि जिसकी, संगीत और शास्त्रीय संगीत में रुचि नहीं भी हो इनकी सारंगी सुनकर मुग्ध हुए बिना न रह सके। दरखास्त उन्हीं उस्ताद की थी।जहांँ तक याद है,जैसा दयनीय अर्जी करने वाला लगता रहता है आमतौर से दुखी उदास वे वैसे ही ख़ामोश खड़े थे।और ब्रह्मदेव बाबू हैं कि उनकी अर्जी मान ही नहीं रहे थे।
तब नाराज वह भी चले गए। हार कर या निराश होकर। लेकिन ब्रह्मदेव बाबू की यह बात मुझे बहुत बुरी लगी।बहुत बुरी लगी। गुरुजी हैं तो क्या? ख़ाँ साहब चले गए तो मैंने सीधे पूछा-
‘क्या गुरुजी,आप यह क्या कर रहे हैं ? वे इतने आर्त्त थे आपने देखा न। और तब भी छुट्टी न देना यह तो अमानवीय है सरासर निष्ठुरता है। और सो भी आप से ?’
जैसी उनकी अदा थी बहुत बारीक और टेढ़ी अदा में मुस्कुराए। फिर बड़े शांत भाव से अपनी भाषाई अदा में मुझे पूछा-
‘आखिर हुआ क्या शिष्य जी ? इतने उद्विग्न और विचलित क्यों प्रतीत हो रहे हैं ? चित्त को शान्त कीजिए।’ अब यह इनका नाटक देखिए। यह सब उनके सामने और मेरे भी, हुआ है। समझ रहे हैं तब पूछ रहे हैं।
‘इतना तो आपको पता चल ही गया था कि इन्हें परिवार में किन्हीं अभिन्न की मृत्यु के हवाले से छुट्टी चाहिए थी। तो बताइए अब यह छुट्टी मांँगने आये हैं और आप छुट्टी नहीं दे रहे हैं। यह हाल है।आपका यह व्यवहार तो मुझे समझ में नहीं आ रहा है। ख़ुद भी कलाकार हैं आखिर इतने संवेदनहीन कैसे हो सकते हैं आप?’ मैंने कहा।
मैं जितना ही तममाया हुआ था उनके इस सुलूक से,क्योंकि यह मुझे एक अफ़सर कलाकार के द्वारा दूसरे बहुत अच्छे बड़े कलाकार को सताया जाना ही लगा था वे उतने ही शांत चित्त ।अपने स्वभावके अनुसार धीरज पूर्वक सुनते रहे।पूरा जब सुन लिया तो अपनी धीर गंभीर आवाज़ में बोलते भये-
‘ठीक है,ठीक है। ज़रा सुन तो लीजिए।मैंने छुट्टी से मना कहांँ किया है। उनसे इतना भर ही तो पूछा है कि किस मांँ का निधन हुआ है ?और छुट्टी देने के क़ब्ल यह पूछना मेरी जिम्मेदारी है।’ अब यह अलग से ब्रह्मदेव बाबू की उलटबाँसी ।
'किस माँ से क्या मतलब आपका ? दस बीस मांँएँ तो होतीं नहीं किसी की?’ मैं वैसा ही था। जब यह कहा तो मुझे कुछ भी न कह कर एक सज्जन को सम्बोधित कर बुलाया-
‘ऐ कैलाश जी,शिष्य जी नहीं मानेंगे। ज़रा कलाकार साहेब की फाइलबा तो लाइएगा।’
कैलाश झा जी तब उनके विभाग में सहायक थे। जैसे ही कहा तो उतनी ही फुर्ती से फाइल लेकर हाजिर हो गए। किसी स्टाफ का ‘मेमो’ टाईप करने में इन झा जी का बहुत मन लगता था। बल्कि दफ्तर में लोग तो यहाँ तक मानते थे कि कुछ लोगों के तो संभावित मेमो भी झा जी टाइप करके अपने फाइल में रेडी रखे रहते थे कि ब्रह्मदेव बाबू उन्हें कहें और उक्त मेमो झट से उनके सामने दस्तख़त के लिए हाजिर कर दें।
ब्रह्मदेव जी ने फाइल खोली। उसे मेरे सामने रख दिया और आधा-आधा पन्ने की कई दरखास्त दिखाते हुए कहा ये सभी दरखास्त उनकी- मांँ की मृत्यु की ही हैं। यह -एक, ये दो, ये तीन,…. सब। देखिए। प्रशासनिक ज़रूरतसे जानना तो आवश्यक है कि नहीं कि इस बार कौन-सी मांँ ?’
अब इस पर मैं क्या बोलता। खामोशी रहना पड़ा। असल में उस वक्त कई कलाकार बड़े तो होते थे शुद्ध हृदय।किंतु पढ़े-लिखे उतनेही कम।सुविख्यात तबला वादक अहमद जान थिरकवा साहेब का क़िस्सा किस रेडियो के आदमी ने कभी न कभी सुना न होगा। वही क़िस्सा जो चेक प्राप्त करने के दौरान की प्रक्रिया में दस्तखत के बारे में एक ड्यूटी ऑफिसर के साथ बातचीत में खां साहेब ने कहा था ! अब ये क़िस्सा दिल्ली केंद्र के ड्यूटी रूम का नहीं है देश भर के केन्द्र की अपनी- अपनी घटना बन गई है। इस ऐतिहासिक घटना का ऐसा अपहरण हुआ है कि इस गौरव को पा लेने के लिए सभी आकाशवाणी केंद्र का व्यक्ति इसे अपना बनाकर कह रहा है।
तो हर केंद्र पर ऐसी मिलती-जुलती मासूम बड़ी घटनाएं भी घटती ही रहती थीं। ज्यादातर कलाकार तो साक्षर भी नहीं होते थे। लेकिन तबीअत के बादशाह ! तबीअत हुई दफ्तर के जिस किसी भी कर्मचारी से किसी छोटे से पन्ने पर छुट्टी की अर्जी लिखवा लेते थे। क़ायदे से उस अर्जी में छुट्टी का कारण जो है वह भी लेखक ही भर देते। कारण तो तकनीकी रूप से अलग- अलग होना चाहिए था। लेकिन इसकी उनको क्या खबर ? उसकी याद भी कौन रखता है ! शुद्ध हृदय सीधे सादे महान लोग। ऐसे में मांँ की मृत्यु की छुट्टी ज्यादा आसान लगती थी। तो अर्जी लिखने वाले साथी भी यही कुछ सर्वमान्य कारण लिख मारते थे। अब उनको क्या खबर कि पिछली भी कई छुट्टी उन्होंने मांँ की ही मृत्यु पर ले रखी है। ऐसे ही होते थे।
किंतु वही कुछ स्मरण लिखते हुए अभी याद करके मन ही मन उन कलाकारों के लिए श्रद्धा से सिर झुका जाता है। ऐसे होते थे लोग और सामने होती थी ऐसे लोगों के साथ एक कलाकार-दिल अफ़सर के सम्मुख संवदेनशीलताके साथ मुनासिब बरत सकने की प्रशासनिक चुनौतियांँ !
अभी मैं अपने गुरु निर्गुणियाँ प्रोड्यूसर बाबू ब्रह्मदेव नारायण जी को भी श्रद्धा से याद करता हूंँ। ▪️
गंगेश गुंजन #उचितवक्ताडेस्क।