Saturday, August 29, 2020

मिज़ाज

जुबां सबकी अपनीअपना मिज़ाज होता है इक रिरियाए जी  हुजूर दूसरा दहाड़ता है।

               गंगेश गुंजन 

        # उचितवक्ता डेस्क। 

Wednesday, August 26, 2020

ग़ज़लनुमा

                ग़ज़लनुमा

किसी को ग़म नहीं होता किसी का                  कभी इसका कभी धोखा उसका।

आप करते हैं वफ़ा की बातें                            इसी में तो जिगर जला उसका।

एक सी है नहीं सबकी तक़दीर                        कहीं सीधा नसीब, उल्टा उसका

फेर ली है निगाह अपनों ने                            मिरा नहीं तो क्यूं क़सूर उसका।     

बुलाता मैं जिसे सदा देता                        ‌‌ ‌      नाम लव पर नहीं आया उसका

जानते भी कम बस्ती के लोग                            अब ज़माना भी कहां गुंजन का।

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                         गंगेश गुंजन 

                # उचितवक्ता डेस्क

Wednesday, August 19, 2020

गांव में चरण स्पर्श

मुश्किलों को पार कर हम गांव आये थे ख़ुशी में,       पांव जो छूने झुके काका ने पीछे कर लिए।     

                         गंगेश गुंजन                                                # उचितवक्ता डेस्क।

Tuesday, August 18, 2020

घर अंधेरा और पड़ोसी

शाम के बाद भी घर में अंधेरा देखकर अब।    'अंधेरा क्यूं है '  पूछने  नहीं आते पड़ोसी।              

                     गंगेश गुंजन,                                               # उचितवक्ता डेस्क।

रूमानियत

                         रूमानियत 

मनुष्य के अनुभव या विचार की कोई भी          भाव प्रवण मनोदशा एक रूमानियत ही है।क्रान्तिकामी ओज-उद्गार भी।

                               🔥
                         गंगेश गुंजन                                              # उचितवक्ता डेस्क।

घर घुसड़ा काल

घरघुसड़ा बनने से रोका क्योंकि...

जवानी में जब घरघुसना बनना चाहते थे तो समाज के डर से पिता जीने रोका क्योंकि तब पुरुषों का अधिक देर तक आंगन में रहना वर्जित था। समाज में हंसी होती थी। 

अब इस उम्र में कोरोना ने आकर घरघुसड़ा बना कर छोड़ दिया है। सोशल डिस्टेंसी ऊपर से अंकुश है...विडंबना देखिए।

                      # उचितवक्ता डेस्क। 

Sunday, August 16, 2020

नैतिकता एक अंकुश है

मनुष्य की नैतिकता, हाथी के कान में लटके हुए अंकुश की तरह होती है। 

                    गंगेश गुंजन                                             # उचितवक्ता डेस्क।

Saturday, August 15, 2020

दु:ख ख़ुद्दार

कोई दुखड़ा रोये तो इज्ज़त से सुनना उसको      मत करना नाराज़ दु:ख ख़ुद्दार बहुत होता है।    

          गंगेश गुंजन। # उचितवक्ता डेस्क।

Friday, August 14, 2020

कविता का संसार

सृष्टि की समस्त विधाओं में नवाब कविता,आम आदमी के दु:ख दर्द को सबसे पहले,सबसे अधिक समझती और महसूस करती है। सब से पहले विचार होने तक कहती भी है।                          

   यह विरोधाभास-सा लगता है लेकिन यथार्थ है।                           गंगेश गुंजन

                 # उचितवक्ता डेस्क।

Thursday, August 13, 2020

नवाब है कविता ।

    तमाम कला विधाओं में,कविता नवाब है।

                          गंगेश गुंजन                                              # उचितवक्ता डेस्क।

सफ़र में साथ नहीं...

सफ़र में  साथ  नहीं  अपना  अहसास तो दिया।इनायत ये भी ज़िंदगी पर कुछ कम नहीं उसकी।                            गंगेश गुंजन                                               # उचितवक्ता डेस्क।

Wednesday, August 12, 2020

लोकतंत्र में आदर्श

लोकतंत्र आदर्श हो तो विपक्ष से अधिक सत्ता पक्ष बेचैन रहता है।    

                      गंगेश गुंजन                                             # उचितवक्ता डेस्क।

Tuesday, August 11, 2020

दाग़ की उम्र

दाग़ ज़ख़्म से ज्य़ादा उम्रदराज हुआ करता यह सच है।                                                            घाव सूख जाता है दाग़ फ़साना बन कर रह जाता है। 

                    गंगेश गुंजन 

              # उचितवक्ता डेस्क।

Monday, August 10, 2020

कोरोना बुलेटिन में ड्राविंग रूम नाटक

🌺 कोरोना बुलेटिन 🌺

                  २७मार्च,२०२०.

आज विश्व रंगमंच दिवस पर विशेष  भेंट-दो पात्रीय संवाद-नाट्य:

                  ।  इकलौता दृश्य ।

[चारों ओर से बंद ड्राइंग रूम में बैठे आमने सामने दो लोग-बेचैन बुज़ुर्ग और बेफ़िक्र युवक। दादा-पोता अथवा गांव दालान आदि ]

                           *****

दादा : (बहुत व्याकुलता से खीझ और गुस्से में) :              पता नहीं यह अभागा कब जायेगा यहां से।

पोता : जिस्म का फोड़ा नहीं ना है दादू कि एक-दो           बारी मरहम लगा देने से चला जाये।आप                परेशान क्यों हो रहे हैं? चला जाएगा न।'

दादा : अरे मगर कब जाएगा ? चला जाएगा,चला               जायेगा करता है और भी ज़्यादा ग़ुस्साते और ख़ीझते हुए) । 

पोता: कोई देसी तो है नहीं। इम्पोर्टेड बीमारी है दादू। जानते हो। जब तक का होगा उसको वीसा। वीसा ख़त्म होते ही चला जाएगा।(इत्मीनान से मुस्कुराते हुए )...और आपके ज़माने में वो जो

         एक गाना बड़ा मशहूर हुआ था न दादू ?

दादा: (अनमने, उदासीन भाव से)कौन-सा गाना ?          

पोता : जाएगा -आ-आ जाएगा -आ-आ, जाएगा 

         जाने वाला,जाएगा-आ-आ….

दादा : अरे वह आयेगा आयेगा था। जायेगा जायेगा 

         नहीं...(तनिक सहज होते हुए गाना सही 

         किया तो किशोर वय पोते ने मुस्कराते हुए 

         कहा-)

पोता: हां दादू। मगर अब आपका आयेगा वाला पूरा सिक्वेंसदल गया। यह तो जाएगा-जाएगा   वाला है।

(और काल्पनिक गिटार छेड़ता हुआ बड़ी अदा से तरन्नुम में गाने लगता है-जाएगा जायेगा जायेगा जाने वाला जायेगा….

दादा: बड़ा शैतान हो गया है तू...रुक। ( वह थप्पड़ दिखा कर उसकी ओर लपकने लगते हैं और डरने का अभिनय करता हुआ पोता,गाते-गाते ही ड्राइंगरूम का पर्दा समेटने लगता है।/अथवा स्थान के अनुकूल दालान के ओसारे से उतर जाता है। सचमुच में गिटार की कोई मीठी धुन सुनाई पड़ती है।)

                          🌿 🌳 🌿

            🦚उचितवक्ता डेस्क प्रस्तुति।🦚

     

Sunday, August 9, 2020

कोरोना-काल में कोई नया उपभोग वाद ?


इस बीच हम और हमारे समाजों के भीतर चुपचाप कोई,नया उपभोक्तावाद भी तो नहीं पनप गया ?
                        💝 ! 💝
                      गंगेश गुंजन 
                  # उचितवक्ता डेस्क

Friday, August 7, 2020

गांव की पगडंडी

ज़रा इक आह भी उठने न दी मैंने सफ़र में एक बार।                                                              पड़ा जो पाँव पगडंडी पे अपने गाँव आकर रो पड़े।

                गंगेश गुंजन # उचितवक्ता डेस्क।



Tuesday, August 4, 2020

इस उम्र में अब


अब इसे रक्खें कहाँ पर इतने छोटे ऐसे घर में    लौटी है अब जवान होकर बचपन में खो गयी खुशी।   

           गंगेश गुंजन # उचितवक्ता डेस्क।

Monday, August 3, 2020

भाग्यवाद और शिक्षा प्रणाली


          शिक्षा और भाग्य  ।

साधारण जन-मानस में गहरे बैठे हुए भाग्यवाद को कोई आत्मनिर्भर सक्षम  शिक्षा-प्रणाली ही उखाड़ कर फेंक सकती है। और लोकतंत्र में यह काम सदैव,सत्ता की राजनीतिक इच्छाशक्ति और चरित्र पर निर्भर रहता है। 

                  गंगेश गुंजन

             # उचितवक्ता डेस्क।