|📕| कविता का आम जन !
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मुश्किल है कि आमजन के शोषण, प्रवंचना और दुखों की बात कविता जिस नफ़ासत के साथ जितनी महीनी से कहती है उसी महीनीसे वह संबोधित जनसाधारणभी अपनी यह करुणा और तकलीफ समझ पाता है क्या?
मुझे हरदम यही समस्या रही है कि हम जिनकी कहानी कहते-लिखते हैं उन्हें तो बहुतों को पढ़ना ही नहीं आता। तब साहित्य जो केंद्रीय रूप से उनके ही पक्ष में होता आया कहा जाता है उनकी समझ कैसे बढ़ेगी? और जब यह समझ नहीं बढ़ेगी तो वे इनसे मुक्त होने की प्रतिरोधी चेतना और दृष्टि कैसे विकसित करेंगे ?
ऐसे में प्रकारान्तर से यह लगता है कि जनसाधारण और वंचितों के शोषण की यह कविता-कहानी भी सीमित प्रबुद्धों के विमर्श की दिनचर्या भर होकर रह जाती है।प्राकृतिक आपदाओं के बहु प्रसिद्ध अनुभव-उदाहरण के रूप में कहें तो इस शिल्प,प्रकृति की अत्यंत महीन और सूक्ष्म कलाकारी से लिखी गईं अधिकांश रचनाएंँ ठीक वैसी ही हैं जैसे बाढ़-भूकंप आदि आपदा काल में सरकारें,समाजसेवी संस्थाओं के द्वारा विपदा में घिरे लोगों को भेजी गई जीवन-रक्षक राहत सामग्रियांँ जो पीड़ितों,आपदा ग्रस्त लोगों तक नहीं पहुँचतीं,जा पहुंँचती हैं घोटालेबाजों के बड़े-बड़े गोदामों में।जहांँ से होती हुई फिर ब्लैक के बाजारों में। ।📓।
गंगेश गुंजन
#उचितवक्ताडे.
१३.४.’२५.
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