Sunday, December 29, 2019

शजर बेख़ौफ़

                 🌳🌳🌳🌳🌳

हर एक सिम्त काट  रही  हैं कुल्हाड़ियां।शजर बेख़ौफ़ किसी शाख में पनपता है।       🌱🌱🌱🌱🌱🌱                      गंगेश गुंजन।                                    (उचितवक्ता डेस्क)

Saturday, December 28, 2019

उम्मीद का दामन

एक उम्मीद है कि छोड़ती नहीं दामन।    मिरा वजूद सुकून के लिए तड़पता है।       

                      🕊️  

  गंगेश गुंजन (उचितवक्ता डेस्क)

Monday, December 23, 2019

मुंतज़िर

      भूल जाता है जो आना भी                        उसी के मुंतज़िर हम रह गये।

      गंगेश गुंजन।                               (उचितवक्ता डेस्क)

Friday, December 20, 2019

'अछाहे कुकूर भूकब '

'अछाहे कुकूर भूकै छैक।सूति रहू।' बच्चा कें डरा क' शान्त करबाक उपाय ई कहबी, अभिभावक मुहें नेने- भुटका सं सुनैत आयल छी।

   उच्च सजगताक आवेश मे भरि देश लगैए जेना आशंकाक 'अछाहे कुकूर भूकब' वला परिस्थिति पसरि गेल हो।

   देश-चिन्ता तं सर्वोपरि। मुदा आन देशी मन-बुद्धिये नहिं।एक सीमा धरि,अपन देसी आवश्यकता ओ लक्ष्यक अनुभव मे।देश-चिन्ताक विवेक सेहो स्वदेशी चाही।आयातित बौद्धिकता सं तं जतेक दुर्दशा देश के परतंत्र भारतमे अंग्रेजहु सरकारक प्रभाव मे नहिं पहुंचल छल ओइ सं‌ कय गुना बेसी स्वतंत्र भारत मे भेल हयत। एहि यथार्थ दिस लोकक ध्यान अवश्य जयबाक चाही।🌀

गंगेश गुंजन।(उचितवक्ता डेस्क)

Tuesday, December 17, 2019

अब भी खुलते हैं पुस्तकालय


कालजयी कृति आलोचना में नहीं अंटती है।उसके अंतिम अनुसंधान,आलोचना और निष्कर्ष आने के लिए ही जिम्मेवार पुस्तकालय अब भी खुले हुए हैं।   

                                                                                                      -गंगेश गुंजन।(उचितवक्ता डेस्क)

Thursday, December 12, 2019

एक जुगनू उम्मीद !

    ज़िन्दगी की तमाम तीरगी                        सामने एक जुगनू उम्मीद।

              गंगेश गुंजन।

Tuesday, December 10, 2019

मतला :कभी‌ मिल जाय

कभी मिल जाये तो अपना कहूंगा।          नहीं मिल पाये तो सपना कहूंगा।                                           गंगेश गुंजन।

Monday, December 9, 2019

बांस की विनम्र ऊंचाई

बांस की विनम्रता देखिये कि जैसे ही उसे  लगने लगता है कि वह बहुत ऊंचा और लंबा हो गया है तो वह अपनी छीप(फुनगी) पर ऊपर से ज़मीन की तरफ झुक जाता है। मगर बड़े पेड़ों का गु़रूर देखिये जो झुकना नही जानते। अपनी ऊंचाई में धरती पर फैलते ही चले जाते हैं।

उचितवक्ता डेस्क

Sunday, December 8, 2019

झरोखे से हिमालय !

किसी रौशनदान से हिमालय देख पाना सहज ‌संभव‌ है। हिमालय से कोई रौशनदान देखना सहज संभव शायद ही।

गंगेश गुंजन। (उचितवक्ता डेस्क).          


Friday, December 6, 2019

मनुष्य और फुटबाल

             मनुष्य और फुटबॉल

लुढ़क कर मनुष्य जितनी ऊंचाई से भूमि पर गिरता है वह उतना ही चकनाचूर होकर बिखरता है। फुटबॉल उतनी ही ऊंचाई से लुढ़क कर भूमि पर गिरता है तो उसका कुछ नहीं बिगड़ता है। लुढ़कना फुटबॉल का स्वभाव है आदमी का नहीं।🌳🌳

गंगेश गुंजन। (उचितवक्ता डेस्क)

Wednesday, December 4, 2019

प्रेम और गंगाजल !

गंगाजल भी फूटे हुए पात्र में रखा जाय तो कभी रिस जाता है। प्रेम तरल होकर भी अपनी चाहत के पात्र में टिका ही रहता है।         
          गंगेश गुंजन।(उचितवक्ता डेस्क)

नया एक दिल है मेरा

                       🔥

बाज़ार में आया नहीं है कोई नया ब्राण्ड।    नया एक दिल है मेरा जो मैं बेचूंगा नहीं।                       गंगेश गुंजन।