Monday, June 29, 2020

स्वस्थ आलोचना के लिए

विशेषण के प्रयोग का आलोचकीय इल्म ही स्वस्थ आलोचना का यथार्थ लक्षण और चरित्र होता है।               

                     गंगेश गुंजन

                # उचितवक्ता डेस्क।

Saturday, June 27, 2020

मनुष्य का पराभव

सामर्थ्य,चेतना और विवेक साथ में रख कर भी आदमी, दासता का सफ़र करता रहता है।मनुष्य का पराभव हाथी से कितना मिलता-जुलता है। 

                   गंगेश गुंजन                       

              # उचितवक्ता डेस्क।

Friday, June 26, 2020

हाथी की दासता

हाथी अपनी स्वतंत्रताका शत्रु-अंकुश,          अपने ही कान पर लटकाये चलता है,        विडंबना देखिए।   

                     गंगेश गुंजन

                # उचितवक्ता डेस्क।

   

भाग्य लीखब नहिं करब थीक।

भाग्य लिखबाक नहिं बनयबाक कर्म थिक।   

                    गंगेश गुंजन

               # उचितवक्ता डेस्क।

Tuesday, June 23, 2020

पूंजीवाद और जातिवाद

पूंजीवाद और जातिवाद में ‌कोई अंतर्संबंध है? दोनोें भाई- भाई हैं क्या?                      
                   गंगेश गुंजन
               # उचितवक्ता डेस्क 

Friday, June 19, 2020

प्रशंसा और चापलूसी

अभिधा में की जा रही कोई प्रशंसा ख़ुशामद या चापलूसी लगती है।वही व्यंजनामें प्रशंसा लगती है।               !🙂!

                        गंगेश गुंजन

                    [उचितवक्ता डेस्क]

Monday, June 15, 2020

कहते थे पिता !

'पांव-पैदल चल कर पाती हुई सफलता चमकदार और अधिक टिकाऊ होती है।' पिता कहते थे।

                       गंगेश गुंजन

                  [ उचितवक्ता डेस्क ]

Sunday, June 14, 2020

युद्धभूमि जनसाधारण !

आख़िर,देश के फ़क़त तीन राजनीतिक दलों के वर्चस्व की युद्धभूमि तो नहीं बन गया है  जन साधारण ?                                    नोट :                                            हमारी यह टिप्पणी राजनीतिक नहीं है।

🌀

गंगेश गुंजन,

[उचितवक्ता डेस्क]

Saturday, June 13, 2020

हाथ में फूल दिल कटार है ।

                    🌿🌼 🌿

जिसे हम प्यार करते हैं यह नहीं देखते। हाथ में फूल दिल  कटार है नहीं देखते।

                    गंगेश गुंजन

                [उचितवक्ता डेस्क]

Friday, June 12, 2020

नसीब

    यकायक चुप्प  हुई  शहनाई।                    कोई नसीब लिख गया कोई।

               गंगेश गुंजन

           [उचितवक्ता डेस्क]

Thursday, June 11, 2020

मानिनी पृथ्वी

                         ☀️

पृथ्वी क्या ऐसी मानिनी है कि जबतक सूर्य स्पर्श करके उसे नहीं जगाता तबतक सोती ही रहती है !

                      गंगेश गुंजन

                  [उचितवक्ता डेस्क]

Wednesday, June 10, 2020

। मेहमान ज़िन्दगी।

खुले-बंधे हुए सामान हैं सब इस ज़मीन पर। ज़िंदगी के घर में ठहरे हुए मेहमां की तरह।

                       गंगेश गुंजन

                   [उचितवक्ता डेस्क]

Tuesday, June 9, 2020

आंखों का ख़ंज़र

आंखों का जो ख़ंज़र झेल गया है।        बंदूकें भी सब बेकार उसके आगे।   

                 गंगेश गुंजन

             [उचितवक्ता डेस्क]

Sunday, June 7, 2020

धरती की आरती उतारने आता है सूरज

रोज आकर सुबह में इसकी उतारे आरती। गगन  का सूरज है  रहे, ये  है  मेरी धरती ।                      गंगेश गुंजन

               [उचितवक्ता डेस्क]

Friday, June 5, 2020

.....पानी में उन्वान गया

ग़ज़लनुमा

एकेक कर सामान गया।                  आख़िर में अरमान गया।

बे ईमान नफ़ासत मे।                    ज़्यादातर ईमान गया।  

सारी उम्र वफ़ादारी ।                          तिसपर भी एहसान गया। 

रोगी राजनीति पर यह                      मुल्क कहाँ क़ुर्बान गया।

कुतरे पन्ने फटी किताब                      पानी में उन्वान गया।

कुछ भी होता दिखे नया                    आशा में नादान गया।                  

८/५/२०१४ गंगेश गुंजन

[उचितवक्ता डेस्क]

Thursday, June 4, 2020

आंसू में नहाती ख़ुशी

रोने लगो तो उसी में रम जाएगा दिल भी।लेकिन खु़शी भी आएगी आंसू में नहायी।

                      गंगेश गुंजन

                  [उचितवक्ता डेस्क]

Tuesday, June 2, 2020

प्रेम और करुणा

प्रेम मनुष्य की जीवनी का उत्कृष्ट उपसंहार है और करुणा उसके जीवन को अनमोल उपहार।

                        गंगेश गुंजन

                    [उचितवक्ता डेस्क]

अच्छा सा ठिकाना ढूंढ़ें

                 ।। ग़ज़लनुमा ।।

चले  चलो कोई अच्छा-सा ठिकाना ढूँढ़ें    इक ऎसी ज़िन्दगी का जीना आना ढूँढ़ें।

वो तो कब के हुए रफ्त़ारे ज़माना शामिल एक तरकीब  कोई हम भी सयाना ढूँढ़ें।

वो समझ बूझके ही निकला था अपनी राह भला बताओ  उसे  क्यूँ   कहाँ-कहाँ  ढूँढ़ें।

बहुत उदास है  बस्ती  मेरे पड़ोस  में भी  कोई तजबीज  करें उसको  हँसाना ढूँढें।

रूठ के आ भी गए गर जुनूँ कि गु़स्से में  एक बार फिर से उस गली मे जाना ढूँढ़ें।

अब भी टूटा नहीं सब फिर से बन जाएगा नई   ईजाद    कोई     नया बनाना  ढूँढ़ें।

थका है जिस्म यह जीवन ऐसा चल-चल कर ज़ुबाँ थकी नहीँ अब भी  नया गाना ढूँढ़ें।

मुझसे नाराज़गी इतनी उसकी वाजिब हैै चलो मनायें  कि प्यारा-सा बहाना  ढूँढ़ें।

झुलस रहे हैं जहां पा लें की हसरत में        इक ज़रा और की निस्बत में गँवाना ढूँढ़ें।

                       🌳🌳

-                  गंगेश गुंजन,                    28 दिस.2012 ई.[उचितवक्ता डेस्क]