Tuesday, November 30, 2021

......रो रो कर के जीना भी क्या जीना है

                    ।🔥।
      क़िस्मत क़िस्मत रो-रो कर के
      जीना भी क्या जीना है।
      ज़हर को आशीर्वाद समझ कर
      पीना भी क्या पीना है।

      जो कहते हैं पूर्व जन्म के कर्मों
      का फल भोगते तुम
      दोस्त समझ लो उन्होंने ही सब
      कुछ तुम से छीना है।

      उसके सुनहरे जाल को समझो
      मन्दिर-मस्जिद-गिरजाघर
      इनके धर्म अंधेरे में अब बहुत
      सम्भल के चलना है।

      उनकी ताक़त काली दौलत की
      है और सियासत भर
     अपने पास नेमते क़ुदरत हिम्मत
      लाल पसीना है।

      मौसम की रंगीन मिज़ाजी कुछ
      दीवारों की है रखैल
      उसे मुक्त करने का गुंजन ये ही
      सही महीना है।
                       |🏡|
                   गंगेश गुंजन

              #उचितवक्ताडेस्क।

लिखूँ उसको प्यार...

                      ।🌸।
         चाहता था कि लिखूँ उसको
         प्यार।
         क़लम ने क्यूंँ लिख डाला
         आभार !
                  #उचितवक्ताडेस्क।

                    गंगेश गुंजन

Friday, November 26, 2021

यह समय !

                        🌘
        अन्धे का लंगड़े पर मज़ाक़
         उड़ाने का समय है यह।
                       💤
                    #उचितवक्ताडेस्क।

                            गंगेश गुंजन

Tuesday, November 23, 2021

जीत के जश्न में शहर कहना : ग़ज़ल नुमा

  ⚡।          ग़ज़लनुमा           ।⚡
                       *
      जो भी कहना मुख़्तसर कहना
      बात पूरी उसे मगर कहना।

      सुन सके तो सुना ही देना
     और तो मुन्सिफ़ का डर कहना।

      लोग ज़्यादा तर हैं ख़ौफ़ज़दा
      फ़िक्रे जम्हूरीयत क़हर कहना।

      एक बार और धनिक जीत गया
     शिकस्ता सच की ख़बर कहना।

     हार बैठा अवाम गाँवों में
     जीत के जश्न में शहर कहना।
                      *
           #उचितवक्ताडेस्क।

               गंगेश गुंजन

Monday, November 22, 2021

ग़ज़लनुमा। :

                  🏘️|🏡

    सब हुनका अधिकारे छनि कि तंँ
    पैघ लोक छथि।
    किच्छु करथि खैमस्ती मे कि तँ
    पैघ लोक छथि।

    अपना मनक राजा छथि ओ
    स'ब प्रजा छनि।
    प्रजातंत्र अनुरागी कि तँ पैघ
    लोक छथि।

    कुरहड़िए सँ नाथथि महिंस
    हुनकर इच्छा
    की मजाल क्यो टोकनि कि तँ
    पैघ लोक छथि।

    सऽब छजै छनि किछु कऽ
    गुजरथि आ कउखन
    दुपहर मे टहलथि प्राती कि तँ
    पैघ लोक छथि।

    बलधकेल बेसी व्यवहार करथि
    धुर्झार
    स्वजनहुंँ कें दुतकारथि कि तंँ पैघ
    लोक छथि।

    क'रब धरब सब टा अपने मोनक
    मालिक
    स्वामी सर्वज्ञानी छथि कि तँ पैघ
    लोक छथि।

    एकहि गाम एक समाज मे रहथि
    एकढ़वा
    कत्तहु आना जाना नहिं कि तंँ
    पैघ लोक छथि।

    मिला जुला संसदीय क्षेत्रक
    बड़का नेता
    राजाक निर्माता छनि कि तँ
    पैघ लोक छथि।

    जेहन प्रयोजन दलक प्रबन्धन
    गुण कुशल
    जाति युद्ध सँ दंगा धरि कि तँ
    पैघ लोक छथि।
                     | 🌸|
              #उचितवक्ताडेस्क।

Saturday, November 20, 2021

अभी कुछ रोज़ रह जाते गुंजन : ग़ज़लनुमा

                     🌄
      हवा है आग और  पानी है
      रौशनी मिट्टी ज़िन्दगानी है।

      इश्क़ भर क़ुदरत की दौलत जो
      सभी के हक़ की कहानी है।

      सफ़र की दास्ताँ तो ख़ूब रही
      बिना इबारत मुंँहज़ुबानी है।

      वो जो कह कर गया है उसको
      बात वो मुझसे क्या बतानी है।

      एक-एक  कर के सभी दूर हुए
      य' तनहाई अलग  निभानी  है।

      लगे उसको क्या कह देने में 
      ज़िन्दगी तो  आनी-जानी है।

      आ गये फिर उसकी बातों में
      सियासत में, यह नादानी  है।

      अभी कुछ रोज़ रह जाते गुंजन
      बात तो अस्ल अब  बतानी है।
                      !🌼!

                  गंगेश गुंजन
              #उचितवक्ताडेस्क।

Friday, November 19, 2021

आऊँगा तो ज़रूर

                        🌄

आऊंँगा तो ज़रूर तनिक देर हो मुमकिन

बाज़ार भी है दूर और सवारी दुश्वार ।

                  गंगेश गुंजन

              #उचितवक्ताडेस्क।


Monday, November 15, 2021

इरादा और भूलना

              सुबह इरादा है
            शाम भूल जाना !

           #उचितवक्ताडेस्क।

                 गंगेश गुंजन

Saturday, November 13, 2021

ग़ज़ल नुमा

|•|              ग़ज़ल नुमा              |•|
    मर्म समझाता कोई अब
    तालिबानी का।
    बेरुखी का या कि उस पर
    मेह्रबानी का।

    सच नहीं गर है तो बतलायें भी वे
    मुल्क
    रह चुके किरदार जो इसकी
    कहानी का।

    कौन होगा दौरे बदहाली में
    ज़िम्मेदार
    लिख रहा है कौन क़िस्सा
    बदगुमानी का।

    लग रही है स्याह दिल ये
    ज़्यादातर दुनिया
    और क़ाबिज़ इरादा ज़िल्ले
    सुब्हानी का।

    या ख़ुदा किस दौरे दहशत में
    जिये हैं हम
    तेरी साज़िश है कि ड्रामा
    हुक़्मरानी का।
                   🌓
             गंगेश गुंजन

         #उचितवक्ताडेस्क।

Friday, November 12, 2021

प्रेम लेकर चल पड़ता है

लेकर बैठ जाए वह नहीं।लेकर चल पड़ने वाला प्रेम होता है।
                      🌍🌿🌿
                #उचितवक्ताडेस्क।

                     गंगेश गुंजन

Wednesday, November 10, 2021

ग़ज़ल नुमा

🛖|
     दु:ख आया अतिथि जैसा
     लौट जाएगा तुरत वो
     मगर जो आया तो आ के
     मुझी में बस ही गया।
    
     कांँच और पत्थर की यारी में
     सियासत मस्त है।
     घालमेल से इसने अपने सब
     कुछ ज़हर किया।

     बिना इश्क़ के उम्र गुज़ारी
     नज़्म न एक लिखी
     जाने वो कमबख़्त जिया भी तो
     क्या खा कर जिया।

     इतना जल उतरा गंगा से
     यमुना का कहांँ गया
     वे जानें वे मैंने तो इक गागर ही
     भर लिया।
     
     उनने-उननेे ग़ज़ल को अपना
     कोई हुनर सौंपा
     गुंजन ने एक उम्र,ज़ेह्न और
     अपना जिगर दिया। 
                   *
                        गंगेश गुंजन                
                    #उचितवक्ताडेस्क। 

                        ३०दिसंबर,२०१५.

Monday, November 8, 2021

...बहुत घुंँटता है दम इस बज़्म में अब।


  बहुत घुंँटता है दम इस बज़्म में अब। 

  कहांँ जायें हम उठ के यहाँ से अब।

                       💤

                  गंगेश गुंजन
             #उचितवक्ताडेस्क।

Sunday, November 7, 2021

अंधेरे की ख़ुशफ़हमी !


थक कर सूरज रोज़ रात को सो जाता है।
अंधियारे को भ्रम है उससे डर जाता है।
                       !🌘!
             #उचितवक्ताडेस्क।
                   गंगेश गुंजन

Thursday, November 4, 2021

...अन्धे समय के हम गवाह

         रौशनी है आँख में पर   

         दिख रहा है कुछ नहीं।

         आह किसअंधे समय के 

         हो रहे हैं हम गवाह।

                  ।🌘।
         #उचितवक्ताडेस्क।

              गंगेश गुंजन