Tuesday, April 23, 2024

दो पँतिया : याराना तो रौशन मैंने ऋतुओं का ....

    याराना तो रौशन मैंने                              ऋतुओं का अलबेला देखा,
          जाती हुई सौंप कर अपना,                         सब अगली सखि को जाती है।                              🌸🌿                                           गंगेश गुंजन                                       #उचितवक्ताडेस्क।

Monday, April 22, 2024

...दो पँतिया : जी हुज़ूर करते रहते हो

                         •                              वो तो ख़ैर लुभा जाता है महज़ खिलौने पर,बच्चा है,                                        तुम क्यों बड़े तोप बुधिजीवी,जी हज़ूर करते रहते हो? 

                    गंगेश गुंजन                                     #उचितवक्ताडेस्क।

Friday, April 19, 2024

पिता पुत्रक संदेशा-देशी

         पिता-पुत्रक संदेशा-संदेशी                                       । •।                          बेटा बड़ भावना सँ पिता लय विशेष प्रकार ओ विन्यासक कुल्फी लेने गेलाह। हाथ मे दैत कहलथिन -’ ई खास तरहक कुल्फी अछि पिताजी। भरिसक नै खेने हयब। हाले मे बजार मे अयलैए।’

स्वाभाविके जे पिता परम प्रसन्न होइत ग्रहण करैत फ्रिज मे रखबौलनि। गपशप परिवारी चर्चात्यादिक बाद बेटा आँफिस चलि गेलथिन।
बुढ़ा के कुल्फी मन पड़लनि। बुढ़ी के कहलनि ‘फ्रिज सँ दिअ तँ ओ कुल्फी।’ पत्नी तुरन्त थम्हौलथिन। पहिने तँ माटिक कनिये टा सुन्दर लोटकीक कुल्फी विन्यास भरि मन देखलनि। फेर सुआदि -सुआइद चम्मच सँ खाय लगलाह। मने मन दिव्य स्वादी विन्यासक प्रशंसा करैत पूरा तृप्त भ’ क’ समाप्त कयलनि।प्रशंसा आ उद्गार मे बिना एको रती बिलम्ब कयने बेटा कें व्हाट्सएप्प पर लिखलन्हि;
‘ई लोटकी कुल्फी तँ जुलुम स्वादिष्ट निकलल। वाह रे वाह। एकरा लोभे तँ रोज़ा राखल जा सकैए यौ।’
‘से तँ आब अगिले साल ने पिताजी !’ बेटा चोट्टहि कहलथिन।
ऐ बेर ई सीजनक तँ आब बीति गेल।’
बेटो तंँ हुनके, पिताक प्रशंसा संदेश मे असली निहितार्थ कें नीक जकाँ बुझैत त्वरित लीखि क’ पठौलनि। पढ़ि क’
पुरना मन पिताक मिज़ाज जकाँ मुंँह नै लटकनि।
‘से बड़ दिव मन पाड़लौं बेटा। मुदा एकर दोकानो आब अगिले सीज़न मे खुजतै की ?’ पिता पुत्र कें अओर त्वरित लीखि पठौलनि।
तुरन्ते हँसैत इमोजी वला संदेश पठबैत बेटा प्रणामी इमोजी सेहो पठौलथिन।
   किन्तु एहि प्रकरणक एक टा अओर पाठ सुनल गेलय।से ई जे- साँझ खन बेटा वैह ब्राण्ड दू टा कुल्फी लेने अयलखिन आ कहलखिन जे सोचै छी पिताजी जे दू टा क’ रोज़ अहाँ लय उठौना क’ दी। भोरे क’ द जाएल करत। पिता कें बिहुँसैत कहलथिन आ आगाँ ई जे ‘हमरा सब लेल परम हर्खक बात जे अहाँ कें पसिन्न पड़ल।ओना तँ किछुओ केहनो आनू तँ अहाँ के नहिएँ पसिन्न पड़ैत रहैए।’ फेर माय कें देखैत पुछलनि- ‘नै माँ ?’ माय समर्थनियांं बिहुँसलथिन।

‘हँ यौ। से अहाँ ठीके कहलौं।से हमर स्वभाव अछि।’ कहैत पिता लोटकी कुल्फी कें नेना जकाँ आतुर भ’ देखैत पुत्र के कहलनि- ‘परन्तु से एखन छोड़ू। कुल्फी अनेरे  पघिल क’ सेरा रहलय। पहिने ई लाउ।’
   पिता के कुल्फी दैत माय सङ्गे पुत्र हँसलाह। इति प्रकरणम्।
                    🌿😃🌿
              #उचितवक्ताडेस्क।

Thursday, April 18, 2024

मतदानी दोहा

लोकतंत्र कृशकाय है बलशाली       हनुमान,                                  

अपने मत का इसीलिए सदा रखें अभिमान ।                          •                                 गंगेश गुंजन 

              #उचितवक्ताडेस्क।

Friday, April 12, 2024

ग़ज़ल नुमा : सुख की कुछ मत पूछा कर

                  °🌿°
     सुख की कुछ मत पूछा कर
     दु:ख भर मुझसे साझा कर।
                    °
     पूरा जाम मुझे मत दे
     इसमें आधा-आधा कर।
                    °
     क्यों चाहे दिल तू मुझ से
     पागल प्रेम ज़ियादा कर।
                    °
     राजनीति से बढ़-चढ़ कर
     ज़ेहन कहे तमाशा कर।
                    °  
     एक पराजय से बैठा 
     जय के पीछे भागा कर।
                    °
     है तो दे माँगे उसको
     लेकिन तू मत माँगा कर।
                    °
     सोये हैं थक कर बाबा
     नागा अब तू जागा कर।
                     ••
               गंगेश गुंजन                                       #उचितवक्ताडेस्क।

Sunday, April 7, 2024

गिरना - उठना

गिरने में कुछ वक़्त नहीं लगता। सम्हलने-उठने में कितनी देर और कोशिश लगती है !
                            ..
                     गंगेश गुंजन                                      #उचितवक्ताडेस्क।

Friday, March 29, 2024

अर्जेंट केजरीवाल यूट्यूब एंकर

   टीवी पर कोई कन्या एँकर कह रही थीं       अचानक सुना- 'अर्जेंट केजरीवाल पर         किसी ने नोटिस ही लिया।'
   अब मेरे कान भी धोखा देने लगे क्या ? 

                 गंगेश गुंजन                                    #उचितवक्ताडेस्क।

Thursday, March 28, 2024

ग़ज़लनुमा सुबह सी आई है मुश्किल...

                         📕
सुबह-सी आयी है मुश्किल शाम जैसी चल गई
कुल मिलाकर ज़िन्दगी की रात यूँ
ही ढल गई।

चाँदनी और अमावस-से फ़ैसले
जिसने लिए
कुल मिलाकर सबको उसकी
आरज़ू ही छल गई।

बहुत छोटा ही सा घर था मगर
उसमें देखिए
कुल मिलाकर आठ दशकों
ज़िन्दगानी पल गई।

और दिन होता तो हम भी भूल ही
जाते मगर
कुल मिलाकर आज की तन्हाई
लेकिन खल गई।

हौसले तो पस्त थे किसने भी यह
सोचा था कि
कुल मिलाकर साँस आख़िर जा
रही समहल गई।
                             ••
                 #उचितवक्ताडेस्क।

Wednesday, March 27, 2024

सर्वोच्चता -ग्रन्थि !

🌈               सर्वोच्चता-ग्रंथि  !
  समाज के सर्वश्रेष्ठ व्यक्ति को अपना होना कितना श्रेष्ठ होना चाहिए ? जबतक मनुष्य का यह मन मिज़ाज नहीं पहचाना जाता तब तक कोई भी समाज-व्यवस्था प्रति द्वन्द्विता मुक्त अतः निष्पक्ष नहीं बन सकती है। चाहे कोई भी अंश या पूर्ण पक्षधर सिद्धांत और व्यवहार हो,किसी चेतन जाग्रत मानव समाज में मुकम्मल और सर्वमान्य हो ही नहीं सकता। हरेक प्रत्यक्ष या परोक्ष संघर्ष यहीं पर है।
   सर्वश्रेष्ठता की अदम्य चाहत ही इच्छित मानवता के विकासकी सीमा है। और सो परम्परा की भाषा में बड़ी मायावी है।
                        📓                                              गंगेश गुंजन                                   #उचितवक्ताडेस्क।

दो पंँतिया

बहुत तपिश में लम्बा रस्ता दूर तलक छाया न जल,

बेपनाह प्यास में आये आँसू और    पसीना काम।

                 गंगेश गुंजन                                    #उचितवक्ताडेस्क।

पाखण्ड

🌊                       

                    पाखण्ड !
चरित्र का सर्वोच्च अभिनय है- पाखण्ड।जीवन के नाटक में यह बुद्धि-चतुर व्यक्ति से ही सम्भव है। पाखण्ड सामूहिक शायद होता है। 
                         °°                                                गंगेश गुंजन 
                #उचितवक्ताडेस्क।

Tuesday, March 26, 2024

समय: एक दृश्याँकन : लैडस्केप

🌀            समय: एक दृश्याँकन
                             🌼
एक राजनीतिक पार्टी के बड़े नेता को भ्रष्टाचार के आरोपमें गिरफ़्तार किया जाता है।
प्रवक्ता कहते हैं - ‘अमुक भ्रष्ट सरकार ने हमारे महान् नेता को ग़ैरक़ानूनी गिरफ़्तार किया है।’
सरकारी प्रवक्ता अपनी शालीनता से इस आरोप को सिरे से ख़ारिज़ कर देते हैं।  
तीसरा पक्ष इसपर और भी उच्चस्वर में,और ताक़त के साथ,गिरफ़्तार पार्टी नेता के लिए सहमत- सहानुभूति में और भी तीखे विरोध का वक्तव्य जारी करता करता है।
  महानगरों में बाज़ाप्ता विचारक- बुद्धिजीवी गण निरन्तर लिख-बोल कर इस पर मौजूदा राजनीतिक विश्लेषण,समाजशास्त्रीय टिप्पणियाँ कर रहे हैं।
  साधारण जनता बेचारी सुन-सोच सोचकर विकट दुविधा में फँसी हुई है-
‘आख़िर इन में कौन ग़लत,और पाक -साफ़ कौन है ?
   और जो मॉल-मीडिया है,मोटा-                
मोटी अपना मस्त-तटस्थ
है                    ...

(यह ऊहापोह में पड़े साधारण जन के मौजूदा मानस की चर्चा भर है। कोई राजनीतिक टिप्पणी नहीं।)
                    गंगेश गुंजन                                    #उचितवक्ताडेस्क।

Monday, March 25, 2024

अब तक मुझे लगता था

🕊️🕊️
अभी हाल-हाल तक मैं अपना निजी दुख चुटकियों में दफ़्न कर लेता था।हाँ समूह, सामाजिक दुःख और समस्यायें अवश्य मेरे मानस को देरतक आन्दोलित रखती थीं जब तक किसी न किसी रूप में वह अभिव्यक्त न हो जाए। लेकिन इधर पाता हूंँ कि छोटा से छोटा निजी भी दुःख ज़ब्त करने में असमर्थ होने लगता हूँ।और ये अनुभव इतना उद्वेलित करता है कि अक्सर सहमा रहता हूंँ।
                    🌊
शीश से पैर तक वो धुंध में लिपटा लगा मुझे,
दिल्ली में भी अपने गाँव तक सिमटा लगा मुझे।
                   गंगेश गुंजन                                     #उचितवक्ताडेस्क।

मेरी मित्रता सूची

😆               मेरी मित्रता सूची
  मेरी मित्रता सूची पाँच हजार में तीन-चार कम तो कब न हो चुकी। पूरे पाँच हज़ार मैंने होने ही नहीं दिया है। ये तीन-चार मैंने बुद्धिमानी से रिक्त रख छोड़े हैं। यह सोच कर कि क्या पता कभी प्रधान मंत्रीजी का ही मैत्री-प्रस्ताव आ जाय तब क्या करूँगा ? अथवा रूस के राष्ट्रपति अमरीका के राष्ट्रपति का ? क्योंकि इस कारण पहले के किसी मित्र को अमित्र तो नहीं कर सकता
।वैसे सुनते हैं कि कुछ लेखकों को सौभाग्यवश यदि किसी बड़े लेखक का मैत्री-प्रस्ताव आ जाता है तो ऐसी परिस्थिति में वे विद्यमान मित्र सूची में अनुपातत: छोटे और अनुपयोगी लेखक को आकंठ भरी हुई अपनी मित्रता सूची से निकाल कर बड़े के लिए आदर पूर्वक आसन ख़ाली कर देते हैं। बिठा लेते हैं। 
                    गंगेश गुंजन                                   #उचितवक्ता होली डेस्क।

Friday, March 22, 2024

झूठ का लोकतान्त्रिक नागरिक अधिकार

                        •                           ‌झूठ को सच होने का नागरिक अधिकार प्राप्त है कि नहीं ? विश्व के समुन्नत लोकतंत्र क्या कहते हैं?

(एक दिग्भ्रान्त साधारण जनकी जिज्ञासा है यह।) 

                गंगेश गुंजन                                         #उ.व.डे.

Thursday, March 21, 2024

होने में

°°              होने में
होना ही पर्याप्त नहीं होता। राजनेता और विचारक ही नहीं,कितने कवि तक को जाग्रत और क्रान्तदर्शी लगने के लिए दिखते भी रहना पड़ता है- अनवरत।सामाजिक चेतना और परिवर्तन कामी मन मिज़ाज और जुझारूपन के कुछेक आक्रोश उद्घोष के शब्दों का बार-बार प्रयोग करते रहना पड़ता है।मंचों पर दुहरानी पड़ती हैं - परिवर्तन के लिए सामाजिक प्रतिबद्धताएँ। बाँधकर दिखानी ही पड़ती हैं-सामूहिक मुठ्ठियाँ लाल-लाल आँखें।                                                🔥
                 गंगेश गुंजन।                                     #उचितवक्ताडेस्क।

Monday, March 18, 2024

कुछ अच्छे और आवश्यक कवि !

📔।        अच्छे और आवश्यक कवि !

   कुछ बहुत अच्छे और आवश्यक कवि भी अब निजी आक्रोश और प्रतिशोध की कविताएंँ लिखने और मज़े लेते हुए लगते हैं।
आख़िर ये इस पर क्यों उतर आये हैं ?         
                 गंगेश गुंजन                                     #उचितवक्ताडेस्क।

Sunday, March 17, 2024

ख़ुद्दारी

ख़ुद्दार इन्सान का कोई भगवान भी
नहीं होता है।
                      •
              गंगेश गुंजन                                   #उचितवक्ताडेस्क।

Thursday, March 14, 2024

ग़ज़लनुमा : गिना चुना अफ़साना लिख

📔
    गिना चुना अफ़साना लिख
    जो भी लिख पैमाना लिख।

    हो जिसका लिखना खेला
    तू साहित्य निभाना लिख।

    शम्मा पर कहने में शे-ए-र
    पागल इक परवाना दिख।

    जीवन की लिख रहा किताब
    सफ़ा सफ़ा वीराना लिख।
                        
    भटकी हुई सियासत को
    जन-मन से बेगाना लिख।

    सेठों को लिख मस्ताना
    शायर को दीवाना लिख।

    लोगों ने ठुकराया है
    तू लेकिन अपनाना लिख।

    यह धुंधला मैला तो है
    कल का समय सुहाना लिख।

     गु़रबत लिख हथियारे जंग
     कल को नया ज़माना लिख।                                       । 📔।                                           गंगेश गुंजन                                          रचना:                                          १२/१३मार्च,२०२४.

                 #उचितवक्ताडेस्क।

Monday, March 11, 2024

एक दो पँतिया

एक जुगनू दिखा अमावस की आधी रात

हुआ एहसास उम्रकै़द में सच ज़िन्दा है।

              गंगेश गुंजन                                  #उचितवक्ताडेस्क।

Wednesday, March 6, 2024

काल काल के कवि !

📔          काल-काल के कवि !
                            •
  हम उस काल के रचनाकार हैं जब हमारा कवि होना पाठक, श्रोता समाज तय करता था। हमें ख़ुद को कवि साबित नहीं करना पड़ता था। कवि होने का कोई प्रबन्ध नहीं करना पड़ता था। वह कार्य हमारी रचना करती थी। सम्पादक समाज ही हमें कवि-लेखक की यथोचित मान्यता और स्वीकृति दे कर महिमा से मंडित करता था।मान्यता के लिए अनियंत्रित उतावलापन नहीं था। किसी किसी भी यश या मान्यता के याचक शायद ही होते थे।
  आजकल समाज की यह भूमिका भी स्वयं कवि ने ही उठा रक्खी है। फेसबुक समेत तमाम डिजिटल सामाजिक माध्यम के अभिमंच की बहती गंगा ने इसे और भी सरल सुलभ कर दिया है।सम्प्रति रचनाकार स्वयं सिद्ध हो रहे हैं।
  अधिकतर कवि अपने आभामंडल स्वयं निर्मित करते रहते हैं।                                                      📒                                               गंगेश गुंजन                                    उचितवक्ताडेस्क।

एक दू पँतिया

बहुत उदास भी मौसम में फूल खिलते हैं
नहीं मिली ज़मीं तो आसमां से मिलते हैं।
                      🕊️
                गंगेश गुंजन।                                 #उचितवक्ताडेस्क।६.३.'२४.

Tuesday, March 5, 2024

असली नक़ली प्रगतिशीलता

क्षेत्र कोई भी हो,लिखी,पढ़ी और फेसबुक पर समझी जा रही सारी प्रगतिशीलता असली नहीं। इनमें ज्य़ादा तो नक़ली हैं।                               •                                                   गंगेश गुंजन                                     #उचितवक्ताडेस्क।

Wednesday, February 28, 2024

दुर्लभ संजीवनी दृश्य : दादी-पोती।

                दादी - पोती                                               🌼|                             ऐसे दुर्लभ संजीवनी-दृश्य और इस महाकाल में? केवल पार्क में ही मिलेंगे आपको। टहलने के लिए ही सही,जरूर निकला करिए।

...अवश्य ही एक पोती अपनी दादी को सहारा दिए सैर करा रही है ! 
             जीयो बिटिया !
                     🌳 

(पार्क में की एक फोटो जिसमें पोती बहुत वृद्ध दादी को सैर करा रही है)

               गंगेश गुंजन                                    #उचितवक्ताडेस्क।

Friday, February 23, 2024

तीन दो पँतिया

                     🌒
दुखियों का दरबार लगाना आता है
वैभव  का  अम्बार  दिखाना आता है।

सुने किसी की वो कुछ नहीं उसे भाये
उसे फ़क़त अपना फ़र्माना आता है।

फुंसी भर मुश्किल को कर दे घाव बड़ा
फिर उसको कैंसर कर देना आता है।
                 🌈|🌈
         #उचितवक्ताडेस्क।

Thursday, February 22, 2024

उजला हुआ कवि

 विकट काले समय पर
  लाल क़दमों से चलता गया कवि !
                      उजला हुआ कवि।
                          🌄

 (मैथिलीमे एक टा बहुत पहिनेक फेबु पोस्ट।)
                     गंगेश गुंजन                                     #उचितवक्ताडेस्क।

                     २३.०२.'२४.

Monday, February 19, 2024

दो पंँतिया: याद कभी मुझको भी कर लोगे..

  याद कभी मुझको भी कर लोगे                  तो कितना ख़र्चा होगा, 
  एक ग़रीब का जी जुड़ाएगा                      और तुम्हें भी दुआ लगेगी। 
            गंगेश गुंजन                                   #उचितवक्ताडेस्क।

Sunday, February 18, 2024

फेसबुक पर लोग सब

     📕🌿      फेसबुक पर लोग सब !
फेसबुक पर कुछ लोग छींकते हैं
कुछ लोग खाँसते हैं
कुछ लोग हँसते हैं
कुछ लोग बोलते हैं
कुछ लोग चीख़ते हैं
कुछ लोग गाते हैं।
कुछ रोते-कलपते हैं
कुछ लिखते-पढ़ते हैं
कुछ लोग अपना स्वास्थ्य बुलेटिन होते हैं तो कुछ लोग अपनी उपलब्धियों का कैलेन्डर होते हैं।
कुछ लोग अपना सफ़रनामा पढ़वाते हैं,
कुछ अपनी दिनचर्या बतलाते हैं
कुछ लोग अपनी-अपनी राजनीतिक पार्टियों का नगाड़ा बजाते हैं
कुछ कथित तथाकथित परिवर्तन के नारे लगाते हैं।
कुछ किन्हीं का स्तवन लिखते हैं
कुछ उनकी भर्त्सना करते हैं
कुछ उपदेश देते हैं
कुछ उपदेश लेते हैं
फेसबुक पर कुछ लोग वैद्य भी होते हैं
वैसे ही कुछ लोग हकीम होते हैं,जैसे कुछ लोग बड़े-छोटे अस्पतालों के डाक्टर होते हैं।
कुछ लोग विशेषज्ञ होते हैं
कुछ विशेषज्ञों के भी विशेषज्ञ होते हैं।
कुछ लोग सहानुभूति-भिक्षुक होते हैं
कुछ लोग शुभाकाँक्षा के थोक वितरक होते हैं
फेसबुक पर कुछ लोग लेखक-कवि होते हैं
कुछ लोग, कवि-लेखक होने वाले होते हैं

फेसबुक पर सब लोग इतने अपने होते हैं कि सबलोग सबलोग की दैनिक बाट जोहते हैं।
फेसबुक पर कुछ लोग गांँव कुछ नगर होते हैं
कुछ दालान और नगरों के ड्राइंग रूमों में अकेले बैठे बुजुर्ग से खाँसते बोलते हैं
वे कुछ लोग बुरे मौसम में बच्च़ों को घर से बाहर नहीं निकलने की हिदायत देते रहते हैं।
फेसबुक पर जवान होते हुए किशोर उनसे चिढ़ते रहते हैं।
और तो और,कुछ लोग इस पर कुछ भी लिखे हुए को कविता ही समझ लेते हैं।

फेसबुक पर कुछ लोग इतना अच्छा लिखते हैं कि वह अच्छा कुछ लोग,दिल से पढ़ते हैं।
कुछ लोग तो इतना सुन्दर लिखते हैं कि कुछ लोग उनके लिखने का                   इन्तज़ार करते रहते हैं।                                               ।📕।

                  गंगेश गुंजन                                    #उचितवक्ताडेस्क।

Saturday, February 10, 2024

दो पँतिया : धोखे भी शामिल हैं यहाँ...

धोखे भी हैं शामिल यहांँ जीने के हुनर में

जीना है अगर ख़ास कर के मेट्रो नगर में।

                      । 🌒।                                            गंगेश गुंजन                                  #उचितवक्ताडेस्क।

Thursday, February 8, 2024

दिल्ली पुस्तक मेला १०-१८.२.'२४.

पुस्तक मेला

    (१०फरवरीसे१८फरवरी-’२४ई.)

आगामी विश्व पुस्तक मेला,कवि-लेखकों की आने वाली पुस्तकों और प्रकाशनों पर( की खुशामद करती हुई सी)दनादन फेसबुक प्रदर्शित टिप्पणियांँ की बारिश में भीगते पढ़ते हुए मुझे तो लगता है बहुत से लेखकों को पुस्तक मेला जाने में भारी र्अहिचकिचाहट भी होगी। जिन लेखक कवियों की कोई भी पुस्तक, किसी भी प्रकाशन के किसी भी स्टॉल पर प्रदर्शित नहीं दिखने वाली है वे अपनी निरीहता तुच्छता की ग्रंथि से पीड़ित भी हो सकते हैं। जब उनकी किताब ही नहीं छपी है तो वे कहाँ के लेखक,कैसा प्रकाशन और किन महाभागों के कर कमलों से भव्य विमोचन ?उसके समाचार ! सो मुझे तो ज़बरदस्त आशंका है कि इस संकोच और ग्रंथि में बहुत सारे लेखक कवि कहीं पुस्तक मेला जाने से ही न परहेज़ कर लें।

  विज्ञापन विस्फोट का यह परिदृश्य इस दफ़े कुछ और नया है। इधर हर बार यह प्रवृत्ति कुछ और बढ़-चढ़ कर विस्तार से बाजार होती और करती हुई दिखाई देती है। 

     बहरहाल मैं तो जाऊँगा क्योंकि आजतक किसी पुस्तक मेले के मौक़े पर मेरी कोई पुस्तक छप कर आयी ही नहीं। 

मुझे तो उसका स्वाद भी पता नहीं है।😆।

   लेकिन जाऊंँगा ही इसका इससे भी बड़ा और कारण है। वह यह है कि एक समय में एक स्थान पर इकट्ठे इतनी गुणवत्ता,संख्या और मात्रा में पुस्तकें और अध्ययन अध्यापन संबंधी सामग्रीकोसद्य: देख पाना क्या सबको नसीब हो जाता है ? कितने भी प्राचीन और बड़े पुस्तकालय में चले जायें तो भी ?

  तो अगर ऐसा अवसर आ रहा है तो उसे कैसे ज़ाया कैसे होने दूंँगा। इतनी पुस्तकें एक साथ देखकर आंँखों को बहुत दिनों के लिए तृप्ति और राहत मिल जाती है।

     और वे वरिष्ठ-कनिष्ठ आत्मीय प्रिय साहित्यकार साथी जिनसे,एक ही शहर में रहते हुए भी कितने कितने दिनों तक नहीं मिल पाते उनसे भी भेंट होने का सम्भव आनन्द ! यह आशा तो और विशेष है।

   मिलते हैं ।आते हैं । शुभकामना।          📕📕📕📕📕📕📕📕📕📕📕📕

                 गंगेश गुंजन                                      #उचितवक्ताडेस्क।

Tuesday, February 6, 2024

दो पंँतिया : इस अलाव में ताब नहीं अब...

  इस अलाव में ताब नहीं अब
  सभी शरारे बुझे लग रहे।
  और सर्द होते मौसम में थर-थर               क़लम तो और अशुभ है।                                     🔥|🔥                                           गंगेश गुंजन                                    #उचितवक्ताडेस्क।

दो पँतिया : देवता सब पुराने हो गये हैं

                    📔

      देवता सब पुराने हो गए  हैं

      आदमी अब सयाने हो गए हैं।

                 गंगेश गुंजन                                   #उचितवक्ताडेस्क।

Saturday, February 3, 2024

दो पंँतिया : मक़बूल तो इस दौर में कुछ

मक़बूल तो इस दौर में कुछ भी          कहाँ रहा,                                       इक शाइरी पे नाज़ था सो जा             रही बाज़ार।                                                         🌊🌊                                            गंगेश गुंजन।                                 #उचितवक्ताडेस्क।

Friday, February 2, 2024

श्रेष्ठता के पैमाने

📕            श्रेष्ठता के पैमाने 
  सभी श्रेष्ठता अपनी वास्तविक गुणवत्ता पर ही टिकी हो यह ज़रूरी नहीं है। साहित्य में तो और भी नहीं। यहांँ तो और बहुत सूक्ष्म,  कूटनीतिक स्तर तक बौद्धिक कुशलता से संस्थापित होते हैं। अधिकतर ऊंँचाई और श्रेष्ठता भी अक्सर,संगठनात्मक प्रक्षेपण और प्रायोजित होती हैं। कभी विचारधारा, कभी पारस्परिक स्वार्थ और प्रवृत्ति मूलक लाभकारी योजना में। वैसे दुर्भाग्य से ऐसी तुच्छताओं के संकीर्ण संगठन साहित्य कलाएंँ और प्रबौद्धिक समाजों में अधिक ही सक्रिय रहते हैं। इनके कारण प्रतिगामी विचार और कार्य को अदृश्य और बहुत सूक्ष्म रूप में पर्याप्त ताक़त मिलती रहती है। दिलचस्प कहें या दोहरा दुर्भाग्य यह है कि मीडिया-माध्यमों में ये ही वर्ग,साहित्य की मशाल होने का भी दम भरते दृष्टिगोचर होते हैं।
  इनके पीछे अति महत्वाकांँक्षी नवसिखुओं की शोभायात्रा भी चलने लगती है।
   आप माने रह सकते हैं :
   अपवाद का तिनका !
                               💥                                                गंगेश गुंजन 
                    #उचितवक्ताडेस्क।

Friday, January 26, 2024

ग़ज़लनुमा : यादों से पहले माज़ी का मंज़र

                    🌼

यादों से  पहले माज़ी का मंज़र था
बाद नदी के आगे एक समन्दर था।

सजी धजी मीना बाज़ार व' मोहतरमा
और सामने कोई खड़ा क़लन्दर था।

अभी-अभी तो नेता की मजलिस छूटी
और अभी ही भड़का कोई बवंडर था।

अबके भी बादल बरसे बिन लौट गये
धरती  के आगे  शर्मिन्दा अम्बर था।

अन्देशे हर सू क्या अनहोनी हो जाए
ऐसे में इक फ़ोन अजाना नंबर था।
                          ••
                    गंगेश गुंजन                                     #उचितवक्ताडेस्क।

Tuesday, January 23, 2024

शे-एर नुमा : सिमट कर रह गया लगता है

सिमट कर धँस गया लगता है जीवन ही सियासत में 

अभी तो गीत गाना इश्क़ होना,चाय भी  सियासत है।

                    ••                                             गंगेश गुंजन                                  #उचितवक्ताडेस्क।

Monday, January 22, 2024

चित्त इतना क्यों है उद्विग्न आज?

      किस अज्ञात बेचैनी से चित्त                       बहुत उद्विग्न है आज।

                     गंगेश गुंजन                                          २२.०१.'२४

Friday, January 19, 2024

मेघाच्छन्न प्रतिबद्धताओं में

💨         मेघाच्छन्न प्रतिबद्धताओं में 

     लिख पढ़ की दृष्टि से प्रतिबद्ध
रचनाकारों का अभी अकाल काल चल रहा लगता है। सच और यथार्थ तो फिलहाल दलीय राजनीतिक सत्ताओं के मीडियाओं की लुक्का छिप्पी भर बन गया है। सार्वजनिक जीवनके सभी यथार्थ किसी न किसी राजनीतिक सत्ता की ही उपज भर प्रचारित होने रहने के कारण अपने-अपने सकल प्रतिबद्ध अपनी ज़िद से ही तमाम चैनेलों पर पक्षीय यथार्थ गढ़ कर सेवायें दे रहे हैं।काम चला रहे हैं।ऐसा सिर्फ़ साहित्य में ही नहीं, प्रखर उग्र पत्रकारिता में भी आम लगता है। साधारण जन के लिए तो यह और खतरनाक है।आख़िर उनका भी तो कोई अपना पक्ष है। इस घटाटोप को वे क्या समझें और करें ? किस तरफ देखें,जायँ।
  जाने किनके पास अपना अपना कैसा विश्वस्त सूचना-तंत्र है कि वे भरदेशी समाज राजनैतिक सच्चाइयों को आर-पार देख परख लेते हैं,समझ लेते हैं और मन मुताबिक़ कहने के लिए सान्ध्य सत्यों की भी बारात भी सजा लेते हैं। आश्चर्य होता है।
साधारण जन और सिर्फ़ लेखक इसमें बौआ जाता है। भटक जाता है।उसमें तो
किंकर्तव्यविमूढ़ता की परिस्थिति व्याप्त है।
    पत्रकारिता तो ख़ैर रोज़मर्रे की खेती है लेकिन इस घनी अनिश्चितता के दौर में कुछ दिनों तक कविता लिखना स्थगित नहीं रखा जा सकता ? मैंने तो सोचा है।
               #उचितवक्ताडेस्क।

Thursday, January 18, 2024

दो पंतिया: फटी चिटी ख़ुशियाली से

फटी-चिटी ख़ुशियाली से अब बिल्कुल दिल भरता है नहीं।

होता कोई एक मुकम्मल सिर पर अर्श शामियाना।                                       

                        *                                               गंगेश गुंजन                                      #उचितवक्ताडेस्क। 

Wednesday, January 17, 2024

शे-र नुमा :

  बाहर से डर कर घबरा कर मैं                   अपने भीतर भागा,                               और घिर गया और डर गया                 और तीरगी तन्हाई से।

                गंगेश गुंजन #उचितवक्ताडेस्क।

Wednesday, January 10, 2024

ग़ज़लनुमा : आलम में तुम भी गुंजन जी

                 🌿 🧘🌿
     दिल का वो भी क्या आलम था
     क्या आलम है दिल का  ये भी !

     धरती पर  अब क्या धरती है
     तब यह धरती क्या धरती थी।

     वो गंगा तब क्या गंगा थी
     अब कैसी  हैं ये गंगा जी।

     बचा हुआ शायद हो मेरा
      पटना भागलपुर औ राँची। 

     किन ख़्वाबों में रचे-बसे हो 
     तुम भी ना तुम भी गुंजन जी।
                       🍂🍂
                   गंगेश गुंजन                                     #उचितवक्ताडेस्क।

Monday, January 8, 2024

श्राप देता हूँ कि अगला जनम आपलोगों का

🌓
.    अभी जो सबसे बड़ी ख़बर निकल                  कर सामने आ रही है…

                          💥
   आजकल सौ पचास ख़बरें ही नहीं सौ दो सौ ‘सबसे बड़ी ख़बर ही निकल कर आती है।’ कोई साधारण या छोटी ख़बर तो होती ही नहीं। इतने बड़े देश के विस्तारसे दिल्ली पहुंँचते-पहुंँचते ख़बर सबसे बड़ी बन कर सामने आ जाती है। एंकरों के श्रीमुखों से बिहार के ककोलत और झारखण्ड के हुन्ड्रू झरने की तरह छल छल नि:सृत होने लगती है।
    ख़बर फिर भी एँकर को वह ख़बर उतनी बड़ी बनती हुई लगती तो एंकर गण गला फाड़ू आवाज़ के आह्वान से उसे बड़ा बना कर ही छोड़ती / छोड़ते हैं।
   तो इन तार सप्तक वाले समाचार वाचकों ने क्या सोच लिया है ?
  बहुत जी जलता है तो अब कभी कभी शक़ भी होता है कि- आपलोग कहीं विदेशी कान मशीनों की कम्पनियों के लिए मॉडलिंग तो नहीं कर रहे हैं ? पगार तो, सुनते हैं आपलोगों को अच्छी ख़ासी मिलती है !
   आपलोगों ने अच्छे भले मेरे इतने सुरीले कानों की कैसी दुर्गत कर डाली है,मेरी ही नहीं मेरी तरह का टीवी-निर्भर एक पूरा का पूरा लाचार समाज है जो दिनानुदिन और बज्र बहिर हो रहा है अतः सिर्फ़ अपने लिए ही नहीं, इस सामूहिक हित में आज श्राप देता हूँ कि आपलोगों का अगला जनम
पुराने ज़माने के ग्राम-कोतबाल में हो ताकि भर रात गांँव भर ‘जागते रहो-जागते रहो’ चिकरते-बौआते बीते…

                   गंगेश गुंजन                                      #उचितवक्ताडेस्क।

Saturday, January 6, 2024

कुछ भर मेरे मन में था : ग़ज़लनुमा

                     •
     कुछ  भर  मेरे मन में था
     बाक़ी  सब  दर्पण में था।

     मेरा मैं  तब  सुन्दर  था
     वो जब कभी नमन में था।

     चलते-फिरते कहाँ मिला
     जो एकान्त मगन में था।

     उसका ही था कॉपी राइट
     पहले मिरे छुअन में था।

     सुख का अपना होगा स्वाद
     दु:ख भी किसी सहन में था।

     नया - वया सब भ्रम ही है
     जो था प्रथम मिलन में था।

     अरुणिम अधर क्षितिज पर जो
     उषा-मृदुल चुम्बन में था।
                        ।📕।
                    गंगेश गुंजन                                     #उचितवक्ताडेस्क।

Thursday, January 4, 2024

अपने मयार से उतरा हुआ

                      🕊️।                          उतर गया अपने मयार से मैं ख़ुद ही ये ध्यान हुआ,
ऐसे में दुश्वार हो कहीं हम तक दोस्त का आ सकना।
                       🍂🍂                                             गंगेश गुंजन                                      #उचितवक्ताडेस्क

दुःख दस्तक दे करके ख़ुद

  दु:ख दस्तक दे करके ख़ुद ही लौट
  गया होता 
  मेहमाँ को कैसे लौटाते बाहर से घर      
  बुला लिया।
                    गंगेश गुंजन                                      #उचितवक्तडेस्क

Monday, January 1, 2024

मैं कोई अख़बार नहीं हूँ : ग़ज़लनुमा

.                    •
     मैं कोई अख़बार नहीं हूँ
     वो चौथा व्यापार नहीं हूँ।
                    •
     सब कुछ छूटा अभी नहीं है
     बिखरा जन आधार नहीं हूँ।
                    •
     दह बह गये तुम्हें लगता है
     कोशी का,घर-द्वार नहीं हूँ।
                    •
     जाती-आती-जाती रहती
     मैं वो भी सरकार नहीं हूँ।
                    •
     जनता का हूँ उसके घर में
     नेता  के  दरबार  नहीं  हूँ।
                    •
     सधे  हाथ में  है लगाम भी
     नया नहीं अब वो सवार हूँ।
                    •
     इतना रह  कर महानगर में
     वंचित टोला,गांँव-जवार हूँ।
                    ••
              गंगेश गुंजन                                     #उचितवक्ताडेस्क।

अब और इसी राह प'चलने की ज़िद करूँ

अब और इसी राह पर चलनेकी ज़िद करूँ

काँटे बिछाये राह काट ले कोई जितना।

                      ‌🕊️

                   गंगेश गुंजन                                    #उचितवक्ताडेस्क।