Wednesday, March 6, 2024

काल काल के कवि !

📔          काल-काल के कवि !
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  हम उस काल के रचनाकार हैं जब हमारा कवि होना पाठक, श्रोता समाज तय करता था। हमें ख़ुद को कवि साबित नहीं करना पड़ता था। कवि होने का कोई प्रबन्ध नहीं करना पड़ता था। वह कार्य हमारी रचना करती थी। सम्पादक समाज ही हमें कवि-लेखक की यथोचित मान्यता और स्वीकृति दे कर महिमा से मंडित करता था।मान्यता के लिए अनियंत्रित उतावलापन नहीं था। किसी किसी भी यश या मान्यता के याचक शायद ही होते थे।
  आजकल समाज की यह भूमिका भी स्वयं कवि ने ही उठा रक्खी है। फेसबुक समेत तमाम डिजिटल सामाजिक माध्यम के अभिमंच की बहती गंगा ने इसे और भी सरल सुलभ कर दिया है।सम्प्रति रचनाकार स्वयं सिद्ध हो रहे हैं।
  अधिकतर कवि अपने आभामंडल स्वयं निर्मित करते रहते हैं।                                                      📒                                               गंगेश गुंजन                                    उचितवक्ताडेस्क।

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