Friday, March 29, 2024
अर्जेंट केजरीवाल यूट्यूब एंकर
Thursday, March 28, 2024
ग़ज़लनुमा सुबह सी आई है मुश्किल...
📕
सुबह-सी आयी है मुश्किल शाम जैसी चल गई
कुल मिलाकर ज़िन्दगी की रात यूँ
ही ढल गई।
चाँदनी और अमावस-से फ़ैसले
जिसने लिए
कुल मिलाकर सबको उसकी
आरज़ू ही छल गई।
बहुत छोटा ही सा घर था मगर
उसमें देखिए
कुल मिलाकर आठ दशकों
ज़िन्दगानी पल गई।
और दिन होता तो हम भी भूल ही
जाते मगर
कुल मिलाकर आज की तन्हाई
लेकिन खल गई।
हौसले तो पस्त थे किसने भी यह
सोचा था कि
कुल मिलाकर साँस आख़िर जा
रही समहल गई।
••
#उचितवक्ताडेस्क।
Wednesday, March 27, 2024
सर्वोच्चता -ग्रन्थि !
🌈 सर्वोच्चता-ग्रंथि !
समाज के सर्वश्रेष्ठ व्यक्ति को अपना होना कितना श्रेष्ठ होना चाहिए ? जबतक मनुष्य का यह मन मिज़ाज नहीं पहचाना जाता तब तक कोई भी समाज-व्यवस्था प्रति द्वन्द्विता मुक्त अतः निष्पक्ष नहीं बन सकती है। चाहे कोई भी अंश या पूर्ण पक्षधर सिद्धांत और व्यवहार हो,किसी चेतन जाग्रत मानव समाज में मुकम्मल और सर्वमान्य हो ही नहीं सकता। हरेक प्रत्यक्ष या परोक्ष संघर्ष यहीं पर है।
सर्वश्रेष्ठता की अदम्य चाहत ही इच्छित मानवता के विकासकी सीमा है। और सो परम्परा की भाषा में बड़ी मायावी है।
📓 गंगेश गुंजन #उचितवक्ताडेस्क।
दो पंँतिया
बहुत तपिश में लम्बा रस्ता दूर तलक छाया न जल,
बेपनाह प्यास में आये आँसू और पसीना काम।
गंगेश गुंजन #उचितवक्ताडेस्क।
पाखण्ड
🌊
पाखण्ड !
चरित्र का सर्वोच्च अभिनय है- पाखण्ड।जीवन के नाटक में यह बुद्धि-चतुर व्यक्ति से ही सम्भव है। पाखण्ड सामूहिक शायद होता है।
°° गंगेश गुंजन
#उचितवक्ताडेस्क।
Tuesday, March 26, 2024
समय: एक दृश्याँकन : लैडस्केप
🌀 समय: एक दृश्याँकन
🌼
एक राजनीतिक पार्टी के बड़े नेता को भ्रष्टाचार के आरोपमें गिरफ़्तार किया जाता है।
प्रवक्ता कहते हैं - ‘अमुक भ्रष्ट सरकार ने हमारे महान् नेता को ग़ैरक़ानूनी गिरफ़्तार किया है।’
सरकारी प्रवक्ता अपनी शालीनता से इस आरोप को सिरे से ख़ारिज़ कर देते हैं।
तीसरा पक्ष इसपर और भी उच्चस्वर में,और ताक़त के साथ,गिरफ़्तार पार्टी नेता के लिए सहमत- सहानुभूति में और भी तीखे विरोध का वक्तव्य जारी करता करता है।
महानगरों में बाज़ाप्ता विचारक- बुद्धिजीवी गण निरन्तर लिख-बोल कर इस पर मौजूदा राजनीतिक विश्लेषण,समाजशास्त्रीय टिप्पणियाँ कर रहे हैं।
साधारण जनता बेचारी सुन-सोच सोचकर विकट दुविधा में फँसी हुई है-
‘आख़िर इन में कौन ग़लत,और पाक -साफ़ कौन है ?
और जो मॉल-मीडिया है,मोटा-
मोटी अपना मस्त-तटस्थ
है ...
(यह ऊहापोह में पड़े साधारण जन के मौजूदा मानस की चर्चा भर है। कोई राजनीतिक टिप्पणी नहीं।)
गंगेश गुंजन #उचितवक्ताडेस्क।
Monday, March 25, 2024
अब तक मुझे लगता था
🕊️🕊️
अभी हाल-हाल तक मैं अपना निजी दुख चुटकियों में दफ़्न कर लेता था।हाँ समूह, सामाजिक दुःख और समस्यायें अवश्य मेरे मानस को देरतक आन्दोलित रखती थीं जब तक किसी न किसी रूप में वह अभिव्यक्त न हो जाए। लेकिन इधर पाता हूंँ कि छोटा से छोटा निजी भी दुःख ज़ब्त करने में असमर्थ होने लगता हूँ।और ये अनुभव इतना उद्वेलित करता है कि अक्सर सहमा रहता हूंँ।
🌊
शीश से पैर तक वो धुंध में लिपटा लगा मुझे,
दिल्ली में भी अपने गाँव तक सिमटा लगा मुझे।
गंगेश गुंजन #उचितवक्ताडेस्क।
मेरी मित्रता सूची
😆 मेरी मित्रता सूची
मेरी मित्रता सूची पाँच हजार में तीन-चार कम तो कब न हो चुकी। पूरे पाँच हज़ार मैंने होने ही नहीं दिया है। ये तीन-चार मैंने बुद्धिमानी से रिक्त रख छोड़े हैं। यह सोच कर कि क्या पता कभी प्रधान मंत्रीजी का ही मैत्री-प्रस्ताव आ जाय तब क्या करूँगा ? अथवा रूस के राष्ट्रपति अमरीका के राष्ट्रपति का ? क्योंकि इस कारण पहले के किसी मित्र को अमित्र तो नहीं कर सकता
।वैसे सुनते हैं कि कुछ लेखकों को सौभाग्यवश यदि किसी बड़े लेखक का मैत्री-प्रस्ताव आ जाता है तो ऐसी परिस्थिति में वे विद्यमान मित्र सूची में अनुपातत: छोटे और अनुपयोगी लेखक को आकंठ भरी हुई अपनी मित्रता सूची से निकाल कर बड़े के लिए आदर पूर्वक आसन ख़ाली कर देते हैं। बिठा लेते हैं।
गंगेश गुंजन #उचितवक्ता होली डेस्क।
Friday, March 22, 2024
झूठ का लोकतान्त्रिक नागरिक अधिकार
• झूठ को सच होने का नागरिक अधिकार प्राप्त है कि नहीं ? विश्व के समुन्नत लोकतंत्र क्या कहते हैं?
(एक दिग्भ्रान्त साधारण जनकी जिज्ञासा है यह।)
गंगेश गुंजन #उ.व.डे.
Thursday, March 21, 2024
होने में
°° होने में
होना ही पर्याप्त नहीं होता। राजनेता और विचारक ही नहीं,कितने कवि तक को जाग्रत और क्रान्तदर्शी लगने के लिए दिखते भी रहना पड़ता है- अनवरत।सामाजिक चेतना और परिवर्तन कामी मन मिज़ाज और जुझारूपन के कुछेक आक्रोश उद्घोष के शब्दों का बार-बार प्रयोग करते रहना पड़ता है।मंचों पर दुहरानी पड़ती हैं - परिवर्तन के लिए सामाजिक प्रतिबद्धताएँ। बाँधकर दिखानी ही पड़ती हैं-सामूहिक मुठ्ठियाँ लाल-लाल आँखें। 🔥
गंगेश गुंजन। #उचितवक्ताडेस्क।
Monday, March 18, 2024
कुछ अच्छे और आवश्यक कवि !
📔। अच्छे और आवश्यक कवि !
कुछ बहुत अच्छे और आवश्यक कवि भी अब निजी आक्रोश और प्रतिशोध की कविताएंँ लिखने और मज़े लेते हुए लगते हैं।
आख़िर ये इस पर क्यों उतर आये हैं ?
गंगेश गुंजन #उचितवक्ताडेस्क।
Sunday, March 17, 2024
Thursday, March 14, 2024
ग़ज़लनुमा : गिना चुना अफ़साना लिख
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गिना चुना अफ़साना लिख
जो भी लिख पैमाना लिख।
हो जिसका लिखना खेला
तू साहित्य निभाना लिख।
शम्मा पर कहने में शे-ए-र
पागल इक परवाना दिख।
जीवन की लिख रहा किताब
सफ़ा सफ़ा वीराना लिख।
भटकी हुई सियासत को
जन-मन से बेगाना लिख।
सेठों को लिख मस्ताना
शायर को दीवाना लिख।
लोगों ने ठुकराया है
तू लेकिन अपनाना लिख।
यह धुंधला मैला तो है
कल का समय सुहाना लिख।
गु़रबत लिख हथियारे जंग
कल को नया ज़माना लिख। । 📔। गंगेश गुंजन रचना: १२/१३मार्च,२०२४.
#उचितवक्ताडेस्क।
Monday, March 11, 2024
एक दो पँतिया
एक जुगनू दिखा अमावस की आधी रात
हुआ एहसास उम्रकै़द में सच ज़िन्दा है।
गंगेश गुंजन #उचितवक्ताडेस्क।
Wednesday, March 6, 2024
काल काल के कवि !
📔 काल-काल के कवि !
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हम उस काल के रचनाकार हैं जब हमारा कवि होना पाठक, श्रोता समाज तय करता था। हमें ख़ुद को कवि साबित नहीं करना पड़ता था। कवि होने का कोई प्रबन्ध नहीं करना पड़ता था। वह कार्य हमारी रचना करती थी। सम्पादक समाज ही हमें कवि-लेखक की यथोचित मान्यता और स्वीकृति दे कर महिमा से मंडित करता था।मान्यता के लिए अनियंत्रित उतावलापन नहीं था। किसी किसी भी यश या मान्यता के याचक शायद ही होते थे।
आजकल समाज की यह भूमिका भी स्वयं कवि ने ही उठा रक्खी है। फेसबुक समेत तमाम डिजिटल सामाजिक माध्यम के अभिमंच की बहती गंगा ने इसे और भी सरल सुलभ कर दिया है।सम्प्रति रचनाकार स्वयं सिद्ध हो रहे हैं।
अधिकतर कवि अपने आभामंडल स्वयं निर्मित करते रहते हैं। 📒 गंगेश गुंजन उचितवक्ताडेस्क।
एक दू पँतिया
Tuesday, March 5, 2024
असली नक़ली प्रगतिशीलता
क्षेत्र कोई भी हो,लिखी,पढ़ी और फेसबुक पर समझी जा रही सारी प्रगतिशीलता असली नहीं। इनमें ज्य़ादा तो नक़ली हैं। • गंगेश गुंजन #उचितवक्ताडेस्क।