Tuesday, October 18, 2016
मोहभंग के दौर में कहा हुआ,अपना यह नवगीत मिला-सुना।क्रान्ति सम्भव जी ने इसे एक नए अंदाज़ में प्रस्तुत कर, यू ट्यूब विधा में मुझे भेजा था। यह आपको भी भेजने की बड़ी इच्छा हो आई। हालाँकि इसी माध्यम से मेरे सभी स्नेहादरणियों तक स्वत: पहुँच जाएगा, अपना यह प्रच्छन्न 'अभिप्राय' भी मुझे प्रेम से क़बूल है। सस्नेह,
Wednesday, October 12, 2016
चाहने से भी हो जाता है
चाहने से क्या हो जाता है
कोई अपना ही हक़ पाता है
जो कोई दूसरों को ठगता है
कभी तो ख़ुद भी ठगा जाता है
मेरे घर आकर आए दिन वह
क्या न इल्ज़ाम लगा जाता है
मैं तो ख़ामोश सह जाता हूँ
वो मेरी ख़ामशी भुनाता है
जाने सच के करीब जा-जाकर
क्यूँ यह ख़ुद्दार लौट आता है
अब तो उसका लिखा हुआ गाना
भूल से भी यह मन न गाता है
उसने तो गीत लिखा था मेरा
भला गंगेश क्यूँ बुलाता है
*
-गंगेश गुंजन
Sunday, October 9, 2016
Wednesday, September 28, 2016
Saturday, September 24, 2016
ग़म अगर है तो बँटवारा हो
ग़म अगर है तो बँटवारा हो /
कुछ हो मेरा ज़रा तुम्हारा हो //
आज भी जीना क्यूँकर मुश्किल /
ज़रा जो दोस्त का सहारा हो //
दूर तक चार सिम्त पानी है /
एक उम्मीद है किनारा हो //
सहे नखरे बड़े उठाए नाज़ /
अब अंदेशा है कि गवारा हो //
आह माज़ी पुकारता है मुझे/
वो ज़िन्दगी वही दुबारा हो //
हरेक लम्हा बदरूप बेजान /
रही हसरत खुशनुमा प्यारा हो //
ख़ुद तो माँ के हुए ना बाबा के /
मेरा बच्चा मगर हमारा हो //
*
१२ मई,२०१५ .
-गंगेश गुंजन .
Thursday, September 22, 2016
जनता बुड़ि-बकलेल !
ढेलमासुक हम ढेप भेल छी।
खलिया गाड़िक खेप भेल छी।।
यार-दोस्त सम्बन्धिक परिकठ।
माटि-मलहमक लेप भेल छी।।
एते पैघ आबादीक गामक ।
गनल-गुथल अभिशेष भेल छी।।
परिवेशक वन आ झाँखुर सँ ।
अपनहि मे हम कोनो जेल छी।।
न्यायालय केर कोनो दोख की।
बिनु अपराधो बन्द भेल छी।।
टीशन बीचक घन अन्हार मे।
इंजिन भङ्गठल रेल भेल छी।।
लोकतंत्र केर मंदिर - मस्जिद।
एक बेर संसदो गेल छी।।
संविधान बनबैत सभा घर।
तकरहि हम बूड़ि-बकलेल छी।।
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-गंगेश गुंजन। 10.03.’16.