Wednesday, November 29, 2017

शे-एर

हल्कान था जी यूं ही सुलूके समाज से
उसनेे भी आज लिख दिया आभार,या ख़ुदा !
*
-गंगेश गुंजन
३० नवंबर,२०१७ ई.

Thursday, November 23, 2017

छाउर-(२)

छाउर.(दू)
*
हाथ मे मैल आ कचकच करत छाउर।
बसातक उधियायल आंखि मे पड़ल तं
सहजहिं कुटकुटायत।
मुदा माछ बनबय में सबसं बेसी काजक रहय।
छाउरे लगा क’ घीचल जाइत छल तहिया
कटाह लोकक जीह।
कहबी मे सेहो कहां बांचलए।
राति-बिराति ठाम-कुठाम क’ देने बिलाड़िक नेड़ी कें
तत्काल झांपि देल जाइत छल,छाउरे सं
मूत-गोबर सं गिल रहि गेल गाय-बड़दक थैर पर छीटल जाय छल छाउर।जल्दी रुक्ख करै लेल माटि।
मां कहलक तं बाड़ी में कोबी-भांटाक गाछ पर तं कतेको बेर हम स्वयं छिटने छी-चूल्हि आ घूरक छाउर।
दतमनिक अभाव आ मार्निंग स्कूलक हड़बड़ी मे
कए बेर छाउरे दातमनि करैत रही हमरा लोकनि
गामक इसकुलिया विद्यार्थी सब।जाइ वाटसन स्कूल ।
छाउरो आब लुप्त होइत वन्य प्राणीक प्रजाति जकां भ’ रहलय। बेरा-बेरी विदा भ’ चलि जा रहल गाम मे बूढ़-पुरान लोक जकां।
मिझायल घूरक छाउरे पर घोकरिया क’ पड़ि-सूति
जड़काला राति बितबैत रहय गामक अनेरुआ कुकूर!
     इतिहास भ’ जायत।

-गंगेश गुंजन । २४.११.२०१७ ई.

Wednesday, November 22, 2017

छाउर

छाउर

*
इतिहासक छाउर सं,
आंखि कुटकुटाइत रहैये एखनो ।
एखनहुं उड़ि-उधिया‌ क’ अबैत रहैये बेसी काल,
ई छाउर कोनो ने कोनो श्मशान सं,क़ब्रिस्तान सं
अबैये आ करेज में पैसि क’
भरि अंतर्रात्मा बिर्ड़ो उठा दैये।
गंध सेहो कर’ लगैए चिरायन-चिरायन
करिते रहि जाइए दिनक दिन।
जीह हौंड़ैत रहैये, रद्द होयबा धरि ओकाइत रहैये कंठ।

आंखिक समस्या मुदा बेसी जटिल अछि।
एना बेर-बेर आंखि कुटकुटयबाक कोन उपाय ?
आंखिक डाक्टर कहैत छथि-
‘इतिहासक छाउर सं कुटकुटाय वाला ई आंखि
अबाह भ’ गेलय। एकर आपरेशन करबाउ।
एकरा तुरंत निकलबाउ आ दोसर लेंस लगबाउ।नव आंखि बनबाउ।अपना कें‌ अप-डेट करू।’

की करी ? मानि लेबाक चाही- डॉक्टरक सुझाव‌ ?
-गंगेश गुंजन

Monday, November 13, 2017

दु:ख दिल से सहा नहीं जाता !

दु:ख दिल से सहा नहीं जाता
और  उससे कहा  नहीं जाता

कौन अपना बचा है गाँवों में
सुन के दौड़ा यहाँ चला आता

बारहां सुख को निकलते देखा
घरके ग़म से ही धकेला जाता

हम भी रहते उसीकी बस्ती में
चैन में मन मेरा  भी इतराता

काश होती  बची कहीं  तासीर
आँख में अपनी भी लहू आता

वह जो बदला तो इस क़दर किअब                
मैं भी उसके  लिए कहाँ जाता

कोंपलें  फूटनी हैं अगली रुत
एक हसरत कि देखकर जाता
🌱
रचना: 9 फरवरी,2013.
-गं.गुंजन