Saturday, December 30, 2023

...बदले नहीं तो जी लिए...

                     ⚡
  वक़्त और हालात से घबरा गये
तो जी लिए
  यार के व्यवहार से उकता गये तो
जी लिए।

  बदलना आदत है क़ुदरत की वो
बदलेगी अभी
  तुम भी जो उसकी तरह बदले
नहीं तो जी लिए।

  कौन है जो यह समझता है नहीं
ख़ुद को ख़ुदा
  रह गये इन्सान यूँ ही उम्र भर तो
जी लिए।

  काट दी जाए ज़ुबांँ और बोलना
हो लाज़िमी
  वक़्त पर चीख़े नहीं जो जिस्म से           तो जी लिए।

  रूठना फिर मनाना फिर रूठ
जाना यार का
  भूल से भी जो लगाया दिल से
फिर तो जी लिए।

  बहुत कुछ बदले हुए इस दौर में
वक़्ते मिज़ाज
  इन्क़लाबी तरबिअत बदली नहीं
तो जी लिए।
                             💥 

                      गंगेश गुंजन 
                  #उचितवक्ताडेस्क।

Friday, December 29, 2023

तीन दो पँतियाँ

                       🌕
    सब के हम स्वामी बन जाएँ                      कर लें सब अपने ही अधीन
    इस जुनून में दुनिया भर ही                      ठना रहा युद्ध सब दिन।
                          •

   है  यहाँ  ये  वो वहाँ सहमा हुआ
   हाय मेरे वक़्त को ये क्या हुआ।

   ख़ौफ़ का आलम कहाँ से कहांँ तक
   दिख नहीं पाये मगर फैला हुआ।
                     •🌓•                                             गंगेश गुंजन 
           #उचितवक्ताडेस्क।

Wednesday, December 27, 2023

सपने का बोझ

क्या सपने का बोझ लिए फिरता है        अपने सीने पर,

जंग जी़स्त की है भरोसा रख ख़ुद पर, पसीने पर। 

                       •                                                  गंगेश गुंजन                                     #उचितवक्ताडेस्क

ग़ज़लनुमा

•                  
     तीखा  पानी  पीया  है
     तब यह मीठा गाया है।
                  •
     ऐसे तो मैं चुप ही था
     छेड़ा तब बतलाया है।
                  •
     रिश्ता ही क्या मौसम से
     सब ने मुझे सताया है।
                  •
     नाटक ख़ूब सियासी है
     इक दूजे को छकाया है।
                   •
     पर तू है रब कितना ख़ूब
     मेरा  दोस्त  बनाया है।
                  ।•।                                                 गंगेश गुंजन                                     #उचितवक्ताडेस्क।

Tuesday, December 26, 2023

स्वार्थी मनुष्य

        दूसरा शायद ही कोई प्राणी । 

पृथ्वी पर सचमुच मनुष्य के जैसा दूसरा कोई प्राणी नहीं है।यह स्वार्थी तो आकाश के आँसू बहने पर, वर्षा मंगल गाने लगता है।            

            गंगेश गुंजन,२१.१०.'२३.                       #उचितवक्ताडेस्क।

Monday, December 25, 2023

दो पंतिया

जन्नत में आकर भी हमको दिल न लगा एक पल के लिए
साथ नहीं हो अपना तो क्या जन्नत और क्या है धरती।
                        ••
                   गंगेश गुंजन                                     #उचितवक्ताडेस्क।

Wednesday, December 20, 2023

दोस्त बैठा हो कहीं...

     बेकली में इन्तिहा तक हम गये
     दोस्त बैठा हो कहीं रूठा हुआ।

                  गंगेश गुंजन
            #उचितवक्ताडेस्क।

Tuesday, December 19, 2023

मुफ़लिस की नींदें

    मुफ़लिसी में एक तो आराम है
    रहज़नों से बेख़बर सोना हुआ।
 
             गंगेश गुंजन                                   #उचितवक्ताडेस्क।

Saturday, December 16, 2023

कोशिशें

हर्ज़ क्या है देख लेंगे और बाज़ी खेल कर
हारता है हौसला या जीतती हैं कोशिशें।

                  गंगेश गुंजन
            #उचितवक्ताडेस्क।

Friday, December 15, 2023

विकास की माया

••               लोक आ लोक !

किछु लोक पैघ होइत छथि।किछु लोक पैघ बनैत छथि। होइ आ बनैए मे पेंच छैक। से बुद्धि मनुष्य कें समय सुझबै छैक जीवनक अनुभव यात्रा मे। जकरा सुझा जाइत छैक तकरा देखाइयो पड़ैत छैक।

   किछु लोक अपने देखैत छथि। बेसी गोटय लोकक देखाओल देखैत छथि।  

  ओना तँ कला मात्र मे किन्तु साहित्य मे एकर बोध निजी धरि सीमित नहिं रहि क’ सामाजिक भ’ जाइत छैक। सैह उत्तर दायित्वक बोध लेखक सोझाँ असल चुनौती रहैत छैक। तें ‘रचब’ आ ‘फोकला’ फोड़ब (लीखब) देखार भ’ जाइत छैक। स्वाभाविके जे देर सबेर पाठक, समाज तथा लोकबुद्धि मे सेहो ई सब टा बात आबिए जाइ छैक।••

               गंगेश गुंजन                                   #उचितवक्ताडेस्क।

Thursday, December 14, 2023

आकाशवाणी भवन का वह ऊषा-काल ...

                        । 📕।

 आकाशवाणी भवन का वह ऊषा-काल,डॉ.आर.के.माहेश्वरी और प्रेस क्लब!
                     🌼
    तब ऐसा ज़माना कहांँ था !
आजकल तो चैनेलों पर जनता के सम्मुख समाचार भी मानो किसी ब्यूटी पार्लर से पूरे मेकअप में, वस्त्राभूषणों से सजधज,बन-ठन कर उपस्थित होते हैं। साधारण आँख-कान को मुश्किल से ही समझ में आने लायक। सो असल समाचार पहचानना हो तो आपको प्रेसक्लब में बैठना होगा।
   परम प्रबुद्ध जनों से भरे प्रेस क्लब जैसे सम्भ्रांत स्थान पर पहुँचना साधारण लोगों के लिए कहाँ सम्भव ?
  प्रेस क्लब से मुझे याद आए डॉक्टर आर.के.माहेश्वरी जी। आकाशवाणी के सेवानिवृत्त चीफ़ प्रोड्यूसर।मुझे उनके अधीन बहुत दिनों तक काम करने का सौभाग्यशाली तनावपूर्ण अवसर मिला। संक्षेप में वे ऐसे व्यक्ति थे जिनका अटल बिहारी वाजपेई जी जैसे लोगों से सीधा संवाद था। जबकि तनिक भी राजनीतिक लोग नहीं लगते थे। रहते तो वे राज्य सभा सांसद की एक शोभा अवश्य हुए होते। उस माहौल में भी ऐसी पैठ और पूछ थी। बहरहाल,
  माहेश्वरी जी आकाशवाणी की अपनी घरेलू राजनीति के जो मुख्यतः प्रोग्राम अफसरी और स्टाफ आर्टिस्ट के बीच प्रबल रूप से सक्रिय थी उसमें स्टाफ आर्टिस्ट के क़द्दावर नेता थे और सामान्यत: लोग उनसे पंगा लेने से बचने में ही भलाई समझते थे। डा.माहेश्वरी केन्द्रीय हिंदी वार्ता के एक वरिष्ठ उच्चाधिकारी थे। बिना विवाद के रहकर जीवन जीना उन्हें बिल्कुल पसन्द नहीं था। अपने से वरिष्ठ भी किन्हीं न किन्हीं उच्चाधिकारी से उनकी ठनी ही रहती थी। समकक्षों में तो रोज़ मर्रा।
या यूँ कहें कि ठाने भी रहते थे। डीजी तक से। लेकिन फिर भी तनाव में मैंने उन्हें शायद ही कभी देखा। उनकी हँसी और ग़ुस्से में अद्भुत सहकारी सामंजस्य था। उनके व्यंग्य और सराहना की मुद्रा में विलक्षण घालमेल रहता। सम्मुख आदमी दुविधा में ही रह जाय कि महोदय प्रसन्न हैं आपसे या रुष्ट ?अंततः इसका पता लगाना कठिन। ख़ैर,
और आकाशवाणी में इतने वर्षों के अनुभव में मैंने देखा डा.माहेश्वरी अपनी तरह के अकेले अनोखे ऐसे व्यक्ति थे जो दुनियावी समझ और मूल्यांकन के हिसाब से बहुत विशेष नहीं लगने साथ ही प्रबंधन और प्रशासन के असहयोग के बावजूद अपने साथियों और अपनी टीम से श्रेष्ठ से श्रेष्ठ काम आसानी से करवा लिया करते थे।अनूठा प्रबंधन कौशल था उनमें। सहज विनोद भाव में याद करें तो पूरे आकाशवाणी तंत्र में वह अपनी तरह के सुनामी ही थे। सो याद है उनके बारे में ज्यादातर लोग सकारात्मक भाव नहीं रखते थे। लेकिन उनके सम्मुख उन्हीं अच्छे- अच्छे को भी मैंने झुका हुआ ही पाया। अभी एक प्रसंग याद आया।   लंच-वंच के दौरान आम तौर से उनके चैम्बर में बैठक बाज़ी हो जाती थी।यूनियन संबंधित फ़रियादी लोगों के अलावे कई बार दिल्ली केन्द्र निदेशकभी होतीं या होते।
कभी हम लोग बैठे थे जिसमें बारी-बारी से कुछ विशेष लोग भी होते ही थे। एक आध जो अति वरिष्ठ थे लेकिन उनकी गोष्ठी में लगभग नियम पूर्वक आया करते थे /आया करती थीं जहाँ एक दायरे में ‘ईगो युद्ध’ के दाव पेंच, रणनीति ,संरचना के चर्चे होते थे। ऐसे में हम दोनों (मैं और स.नि.ब्रजराज तिवारी जी जो तब उनके स.नि.हुआ करते थे) निर्लिप्त भाव से ख़ामोश बैठे रहते।
   उस दिन किन्हीं वरिष्ठ व्यक्ति को आमंत्रित करने की बात हो रही थी जोकि किसी सामयिक राजनीतिक कारणों से आकाशवाणी से रुष्ट चल रहे थे। वे सज्जन विशेष सिद्धान्तवादी प्रचारित थे।लेकिन मुझे अपने विश्वस्त सूत्र से यथार्थ कुछ-कुछ मालूम था। आप तो जानते ही हैं कि सभी प्रकृति के कार्यो की अपनी जमात भी होती ही है । बल्कि सब जानते हैं। जमात विशेष के लोगों की प्रकृति भी लगभग सभी जानते रहते हैं।
माहेश्वरी जी ने जब आदेशात्मक ढंग से उन्हें आमंत्रित करने को कहा तो मैंने अपनी असमर्थता दिखाई।अब माहेश्वरी जी तो माहेश्वरी जी ठहरे। ललकार दिया -
‘कैसा जनसम्पर्क है आपका ? आखिर इतने पुराने सधे हुए रेडियो के अधिकारी हैं आप।’अब वास्तविकता बताना जरूरी हो गया।
‘ऐसी कोई बात नहीं है डॉक्टर साहब। काम तो हो जाएगा किंतु उनकी एक ख़ास कमज़ोरी है…और उसका प्रावधान तो अपने यहाँ है नहीं।’
मैंने कहा। इशारा समझे। और गर्वीले भाव में अकड़ तक बड़े ताव से,जैसा उनका स्वभाव था और व्यक्तित्व, बोले :
‘बोलो तो उन्हें प्रेस क्लब में उससे नहलवा दूंँ।’
और अपनी चुनौती भरी पनखौक आधी हँसी के साथ सम्मुख लोगों को कृतार्थ भाव से देखा।
तभी डीडीजी मधुकर लेले साहेब का फ़ोन आ गया। दोनों की बैठकियाँ अलग से चुपचाप थीं।
आकाशवाणी भवन का वह ऊषा-काल था। क्यों था ? यह दास्तां रहा तो कभी उस पर भी कहने का मन है।    ••
              -गंगेश गुंजन                                 #उचितवक्ताडेस्क।१३.१२.'२३.

Monday, December 11, 2023

बने-ठने समाचार !

             बन-ठन कर समाचार !
                          •
   चैनेलों पर जनता के सम्मुख समाचार भी आजकल मानो किसी ब्यूटी पार्लर से पूरे मेकअप में, वस्त्राभूषणों से सजधज कर प्रस्तुत होते हैं। साधारण आँख-कानों को मुश्किल से ही समझ में आने लायक। सो असल समाचार पहचानना हो,सच या बनावटी ख़बर में फासला जानने की लालसा हो तो आपको प्रेसक्लब में बैठना होगा।
   और धन्य लोकतन्त्र, परम प्रबुद्ध जनों से भरे प्रेस क्लब जैसे सम्भ्रांत परिसर में पहुँचना साधारण लोगों के लिए कहाँ सम्भव ?
                       ⚙️
                   गंगेश गुंजन                                      #उचितवक्ताडेस्क।

Thursday, December 7, 2023

दिल्ली को दरबार कहेंगे

एक नहीं सौ बार कहेंगे                        सुने न तो हुँकार कहेंगे।

थोथे लफ़्ज़ सुने मत जाओ                       सौ क्या एक हज़ार कहेंगे।

ऐसी जो दुनिया की हालत।                      रहना तो दुश्वार कहेंगे।

इन्स्टाग्राम फेसबुक रिश्ते                      अब बस्ती बाज़ार कहेंगे।

कहते होंं कुछ,कुछ करते जो                रहबर को मक्कार कहेंगे।

अबकी भी वैसी ही बीती                    आगे फिर स्वीकार रहेंगे ?

धुंधला दिखलाता जो दर्पण                  तोड़ उसे बेकार कहेंगे।

 कबतक ओछी राजनीति पर             लानत बारम्बार कहेंगे।

सबकुछ यों सहते जाने पर                    ख़ुद को भी धिक्कार कहेंगे।

ऐसे लोकतंत्र में जीना                        दिल्ली को दरबार कहेंगे।  ••

               गंगेश गुंजन                                      #उचितवक्ताडेस्क।