एक नहीं सौ बार कहेंगे सुने न तो हुँकार कहेंगे।
थोथे लफ़्ज़ सुने मत जाओ सौ क्या एक हज़ार कहेंगे।
ऐसी जो दुनिया की हालत। रहना तो दुश्वार कहेंगे।
इन्स्टाग्राम फेसबुक रिश्ते अब बस्ती बाज़ार कहेंगे।
कहते होंं कुछ,कुछ करते जो रहबर को मक्कार कहेंगे।
अबकी भी वैसी ही बीती आगे फिर स्वीकार रहेंगे ?
धुंधला दिखलाता जो दर्पण तोड़ उसे बेकार कहेंगे।
कबतक ओछी राजनीति पर लानत बारम्बार कहेंगे।
सबकुछ यों सहते जाने पर ख़ुद को भी धिक्कार कहेंगे।
ऐसे लोकतंत्र में जीना दिल्ली को दरबार कहेंगे। ••
गंगेश गुंजन #उचितवक्ताडेस्क।
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