बहुत ऊंचा बन के दोस्त मेरा हो गया कुतुब मीनार।
अब उसको देखने में सिर से गिरी जाए मेरी टोपी।
गंगेश गुंजन.(उचितवक्ता डेस्क)
बहुत ऊंचा बन के दोस्त मेरा हो गया कुतुब मीनार।
अब उसको देखने में सिर से गिरी जाए मेरी टोपी।
गंगेश गुंजन.(उचितवक्ता डेस्क)
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स्वीस बैंक और सी.बी.आइ.अपने देश के लोकतंत्र,विशेष कर विपक्ष की प्राण वायु हैं। राजनीति की आयु हैं।परिस्थिति के मुताबिक ये दोनों ही राजनीति को दीर्घायु या अल्पायु बनाते हैं। जनता इन्हीं की दुआओं तले फूलती-फलती और गिरती-पड़ती रहती है।
गंगेश गुंजन।(उचित वक्ता डेस्क)।
पूछ कर आईना से अपनी रुसवाई कर ली।
आईना ठकुर सुहाती करके आईना रहता।
गंगेश गुंजन (उचितवक्ता डेस्क)
वहां गमले में मुर्झाया हुआ था।
बाग़ में तो बेला खिल गया है।
एक से एक वक्ता अभी चुप हैं
अच्छे-अच्छों का मुंह सिल गया है।
गंगेश गुंजन।
अब तो लगता है बचा एक आईना भर सच।
कोई जो मिलता सामने मुंह पर सच कहता।
गंगेश गुंजन।(उचितवक्ता डेस्क)
लोकतंत्र भी कोई न गंगा नहाया।
सांवला सौंदर्य है यमुना का इसका।
(मैथिली से अनूदित)
उचितवक्ता डेस्क
लाल लोहा कर दिया गर्दिश ने जब मेरा जिगर ।
चोट से दुख के हथौड़ों ने गढ़ा है तब मुझे।
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गंगेश गुंजन
जुनूं जुनूं है धर्म का हो या कि विचार का।
लाचार हैं अपने दिल-ओ-दिमाग़ से कुछ लोग।
गंगेश गुंजन
ख़ुशी बरगद न हो जाए देखते रहना।
अच्छा कि दूब,फूल,बांस आम भर रहे ।
गंगेश गुंजन । (उचितवक्ता डेस्क)।
पहले रिश्ते, रहते थे या नहीं रहते थे। रिश्तों में 'है भी और नहीं भी' का यह मनहूस संशय, बिल्कुल नया है,आज की देन है।
-गंगेश गुंजन।। उचितवक्ता डेस्क।।
यह तो कुछ भी नहीं है,देखना उस दिन रुतबा मेरा। आसमाँ ख़ुद उठाने आएगा अपनी हथेली पर मुझे।
गंगेश गुंजन
ज़ख़्म है जानलेवा तो क्या,उसका दिया है ।
किसी और का होता तो मुकदमा न करते ।
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गंगेश गुंजन।
प्रेम की प्रकृति गुनगुनाने वाली होती है,गाने वाली शायद ही ।
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-गंगेश गुंजन। (उचितवक्ता डेस्क)
हमारी इतिहास-दृष्टि को मोतिया बिंद है और वर्तमान को रंग अन्धापन है क्या ?
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-गंगेश गुंजन। (उचितवक्ता डेस्क)
मनुष्य की कोई एक असफलता उसके पूरे पुरुषार्थ की पराजय नहीं होती है। 🌻
गंगेशगुंजन (उचितवक्ता डेस्क)
कपूर की इबारत और मुहब्बत
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कोई शिकवा नहीं है गुंजन से
मुझको आज भी।
मगर कपूर से तो यूं नहीं लिखता
वफ़ा अपनी।
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गंगेश गुंजन
टूटे हैं कई बार ज़िन्दगी के सफर में।
हर बार बिखरनेसे किसीने बचालिया।
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गंगेश गुंजन
वर्तमान का विवेक इतिहास के
स्याह अतीत को संस्कारित कर
उसे संशय मुक्त और उज्ज्वल
बना सकता है।
गंगेश गुंजन
🌻
प्रेम आज्ञाकारी नहीं हो सकता।
आज्ञाकारी होकर प्रेम मर्यादा हीन
हो जाता है।
गंगेश गुंजन
(उचितवक्ता डेस्क)
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किस वीराने में छोड़ोगे कहां
जाकर मुझको।
बहार कर दूंगा सहरा आदत
मेरी तुम देखियो।
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गंगेश गुंजन