Wednesday, July 31, 2019

।। दास्तां दुहरा ‌रहा है ।।

          🌳🌳🌳🌳🌳
         🌳🌳🌳🌳       🌳🌳

   🌳। 🌳               🌳
   इधर हम ग़म भुलाने में ‌लगे हैं।
   उधर वो  दास्ताँ  दोहरा रहा है।    
                  ! 💔 !   
               गंगेश गुंजन

Tuesday, July 30, 2019

कभी नहीं बेचारा दिखना

                      ⭐
     कभी  नहीं  बेचारा  दिखना।
     दिखना तो ध्रुवतारा दिखना।
                      ⭐                   
                गंगेश गुंजन

Wednesday, July 24, 2019

मिलावटक कारबार


    कोनो अधलाहो सरकार सं बेशी
    अधलाह आ ख़तरनाक होइत
    अछि,दवाइ सं ल' क' दूध,तरकारी
    फ'ल आ राजनीतिक मिलावटक
    कार-बार !        

                        💀
      ।        उचितवक्ता डेस्क

इसरो वैज्ञानिक: ऋषि-मुनि

                     🌫️
                     🌍
    इसरो के चन्द्रयान निर्माता,
    प्रयोगकर्त्ता वैज्ञानिक आधुनिक
    वैदिक हैं।आजके ऋषि-मुनि !
                     🌌           
           (उचितवक्ता डेस्क)
                गंगेश गुंजन

Tuesday, July 23, 2019

सत्य विपक्ष साहित्य की भूमिका

                 .अंदेशा.
    अब तो अंदेशा है कि खुद   
    साहित्य,सामाजिक सरोकार में  
    सतत विपक्ष का अपना पद और  
    अपनी पहचान गंवा न‌ दे!
                     🌅
           (उचितवक्ता डेस्क)
                गंगेश गुंजन

Monday, July 22, 2019

विचार नहीं मरता है

    विचार शायद ही मरता है। रहता
    ही है। मार्क्स का विचार रहेगा।  
    धारा प्रदूषित-कलुषित हो जाती   
    है। अभी का संकट धारा का है,
    विचार का नहीं। 

          (उचितवक्ता डेस्क)
               गंगेश गुंजन

।। भाषा का मर्म ।।

।। भाषा का मर्म ।।

*

दु:ख पहले बहुत छोटा था। भाषा उसे समो लेती थी। दु:ख जितना बड़ा होता था भाषा की गोद उससे बड़ी होती थी। धीरे-धीरे दु:ख अनुभव और बुद्धि का हिस्सा होने लगा।अब अनुभव के साथ मिलकर दु:ख कुछ ज्यादा सयाना होने लगा।मां होने तक भाषा ने युवा संतान की तरह मां होकर संभाला। दु:ख उससे भी बड़ा होने लगा।भाषा के कद से बाहर होने लगा। बात उससे बाहर और दुख इतना बड़ा हो गया कि भाषा उसके सामने असहाय और बूढ़ी हो गई। अनुभव का सिलसिला कम नहीं हुआ। रुका नहीं ।फैलता गया । पहले एक या दो दिशाओं में,फिर अनेक दिशाओं में ।शरीर की नसों के स्नायु संजाल की तरह दुख अपने स्वरूप को संचालित करने लगा ।भाषा स्वयं उस में बहने लगी । मां जो थी! भाषा स्वयं दुख का हिस्सा हो गई। ऐसा क्या हुआ कि भाषा जो अंतिम मां है,वह भी थक गई। ऐसा क्या हुआ कि भाषा अनुभव की अपनी ही संतान से पराजित हो गई ? एक दिन मैं बहुत परेशान हो गया । बहुत ही चिंता और तकलीफ में भाषा से पूछा भी:

‘-तुम तो मां हो ! मैं इतना उद्दंड और आवारा कैसे हुआ कि तुम्हारी गोद,तुम्हारी बांहें और तुम्हारे कंधों से बाहर हो गया ?तुम तो मां हो तुमने क्यों नहीं संभाला ?’

भाषा ने माँ की ही तरह शांत धैर्य से कहा : 
‘बच्चे बड़े हो जाते हैं तो मांएं निश्चिंत हो जाती हैं।माँ भी थकती हैं।उन्हें भी विश्राम चाहिए।मेरे गर्भ में वात्सल्य है प्रेम है करुणा है और मनुष्य के सर्वोच्च आनंद की सवारी -भाषा है ! उसके योग्य शब्द शब्दों की सामर्थ्य।अब यह उसे लेकर तुमने जाति, संप्रदाय,धर्म,अंचल और खुद मेरी- भाषा की भी जितनी भीषण समस्याएं पैदा कर ली हैं,जैसे-जैसे विकट अनुभव तुमने पैदा किए हैं इनके लिए तो मेरी मां ने मुझे बना कर भेजा नहीं था ! ये अनुभव ऐसे अंगारों वाले हैं इतने विकराल और सृष्टि भर मनुष्यता को नष्ट कर देने वाले हैं कि जिनके समाधान का मेरा कोई अभ्यास नहीं है। मेरी मां ने मुझे इन सब के लिए तैयार करके कहां भेजा था। यह अनुभव,यह मार्ग, यह प्राथमिकताएं तुम्हारी अर्जित की हुई हैं। सो इनकी जटिलताओं को इन के संघर्षों इनके दुष्परिणामों को कहने- सुनने-समझने और भुगतने लायक भाषा तो अब तुमको खुद बनानी होगी।अब तुमको ऐसी भाषा का आविष्कार करना होगा। मैं तो अपनी भूमिका पूरी कर चुकी हूं ।अब तुम्हें सर्वजन सुलभ सुंदर जीवन के लिए आवश्यक विवेक तक पहुंचाकर मैं जरा करवट लेकर विश्राम क्या करने लगी कि तुमने मुझे किनारे ही कर दिया । 

तो अब जाओ अपने इन महाविनाशी अनुभव के योग्य आकार, और  शिल्प-सांचा का भाषा विज्ञान तलाशो ! योग्य हो गए हो। तुम्हारे दु:खों ने तुम्हें योग्य बना दिया है। मैं भाषा हूं ।मां हूं किंतु अब तुम्हारे ऐसे सयाने हो जाने के बाद गूंगी बन गयी।
आगे छोटी-छोटी मेरी अनंत संतान हैं। उनका पाठ बनना है।उनके पाठ को समझना है। उनके लिए तैयार रहना है। उनके नन्हे मुन्ने दु:खों के आकार प्रकार का कोई नया सांचा तैयार करना है।उन्हें बड़ा होने के लिए,अब की इस खू़ख़ार इच्छा आकांक्षाओं से भरे जीवन को समझने के लिए।तैयार करना है।और अब मेरी यही भूमिका है।
🌱🌱
क्रमशः
-गंगेश गुंजन.

कविता और मनुष्य

                    🌱
  कविता कहने के लिए मनुष्य होना  
  ज़रूरी है। मनुष्य बचा रहेगा तो नहीं  
  लिखी जा कर भी कविता,बची  
  रहेगी।आदमी नहीं रहेगा तो कविता  
  भी निष्पन्द एक शब्द भर रह 
  जाएगी।      
                  🌾
            गंगेश गुंजन

Sunday, July 21, 2019

भाषा और राजनीतिक भाषा

   ।भाषा आ राजनीतिक भाषा।
                      🌳
कोनो राजनीति,भाषाक काज मात्र ओतबे करैत छैक यतबा लगक स्टेशन वा बस अड्डा पहुंचाबै धरि कोनो रिक्शा- तांगा-टमटम ! भाषाक घ'र डेबैत छैक बजनिहार लोक आ सभ समयक कविए-लेखक।
🌾🌾🌾🌾🌾🌾🌾🌾🌾🌾      
             (उचितवक्ता डेस्क)
           गंगेश गुंजन।२२.७.'१९.

वसन्त और पतझड़

                  🌸🌸
   किसी से मिला वसन्त उसे पतझड़
   में लौटाना बहुत बड़ी बेईमानी है !
                   🍂
             गंगेश गुंजन

Friday, July 19, 2019

मर जायं अब तो चाहते हैं

                        🌄

       मर जायं अब तो चाहते हैं,झूठ
       क्यों कहें।
       बस्तीका वो यतीम ज़ेह्न से नहीं
       उतरता।
                        🍂
                    गंगेश गुंजन

Wednesday, July 17, 2019

गांव और नगर

🌄🌄
            । गांव और नगर ।
गांव में सुबह-सुबह भैंस पालने वाले किसान लोग हाथ में पैना लिए अपनी भैंस को पसर* चराने निकलते हैं। शहर में सोसायटियों के संभ्रांत लोग हाथ में छड़ी और फीता-बेल्ट
पकड़े अपने डागी को (कुत्ता)पॉटी कराने (हगाने) निकलते हैं ।
                       *
(*सूर्योदय से पहले भैंस चराने जाना)
🌄🌄🌄🌄🌄🌄🌄🌄🌄🌄
              
           -उचितवक्ता डेस्क-

दिवालिया बिल्डर और आदमी

       दिवालिया आदमी और  
       दिवालिया बिल्डर ।
     🏠🏡 🏘️🏗️🏬🏣🏠
दिवालिया आदमी और दिवालिया बिल्डर दोनों की हालत एक सामान नहीं होती है। दिवालिया बिल्डर के तो सौ पैरों में से कोई एक पैर टूटता है लेकिन दिवालिया आदमी के तो दो ही पैर होते हैं और दोनों टूट जाते हैं। जहाँ बिल्डर के एक पैर में‌‌ क़ानून का मामूली प्लास्टर भरलगाना पड़ता है जो भी उसकी अकूत धन की चिकित्सा-सुविधा के साथ कुछ दिनों में उतर जाता है। वहीं आदमी जो अक्सर बुज़ुर्ग होता है,बिल्कुल अपाहिज़ होकर जीवन जीने को लाचार हो जाता है।
                 🏗️🏡
          -उचितवक्ता डेस्क-

Monday, July 15, 2019

प्रकृति की भाषा

    
       🍂🍂
                     🍂
       पतझड़ प्रकृति की भाषा है,
       जैसे वसंत ! 🍁
                           🍁🍁
               (उचितवक्ता डेस्क)
                    गंगेश गुंजन

Friday, July 12, 2019

एक एक करके होंगे कठघरे में

   
                 🌫️🌫️

किये  फिरते  हैं  वे मसीहाई
सब हैं इस,उस जिस-तिस धरे में।
हम जो इंसाफ़ पर उतर आये
एक-एक करके होंगे कटघरे में।
                  🏗️     
             गंगेश गुंजन

Thursday, July 11, 2019

प्रेम सखि-शिक्षा है !

                      🌼
    प्रेम अपनी वास्तविक प्रकृति में   
    मित्र-लाभ,एक सखि-शिक्षा है!
                   🌼 ! 🌸
           (उचितवक्ता डेस्क)
                गंगेश गुंजन

Wednesday, July 10, 2019

🌫️🌫️🌫️🌫️🌫️🌫️🌫️🌫️ धुंधला,गंदला,ऊबड़-खाभड़
वक़्त पहनते हैं
मजबूरन।
कभी निकलते थे हम भी तो
स्वच्छ धवल एक
समय पहन कर !
🌻
-गंगेश गुंजन.

भारत-पाकि

                    🌌
        * भारत-पाकिस्तान *
                    🌸
पाकिस्तान को हराकर भारत को ख़ुशी होती है,लेकिन बांग्लादेश के अलावा यदि पाकिस्तान किसी दूसरे देश से हारता है तो हमें को दु:ख होता है। भारत को हराकर पाकिस्तान भी ख़ुश होता है लेकिन उसके अलावा किसी और देश से भारत का हारना उसे भी अच्छा नहीं लगता।
    (एक काल्पनिक सर्वेक्षण के   अनुसार)-उचितवक्ता डेस्क
                    🌈🌈

पत्रकार और राजनीति


                   
        पत्रकार और राजनीति
                    🌻
पत्रकार राजनीतिक विश्लेषक तो होते हैं किंतु किसी राजनीति दल विशेष के 'पक्षधर विश्लेषक' भी होते हैं,एक चैनल पर आज यह देखने में आया जो हमें नया अनुभव हुआ !
                   🌄
         (उचितवक्ता डेस्क)
              गंगेश गुंजन

Monday, July 8, 2019

याद मगर रात भर रखो

                    🌼
   हर एक मुलाक़ात का इतिहास
   मत पढ़ो।
   इक आज की ही याद मगर रात
   भर रखो।                
                    🌸                           
                         -गंगेश गुंजन

    

Sunday, July 7, 2019

दु:ख को भुलाना पड़ता है

                     🌻
     सुख को याद नहीं करना पड़ता।
     दु:ख को भुलाना पड़ता है।
                     🌌
            (उचितवक्ता डेस्क)
                गंगेश गुंजन

Saturday, July 6, 2019

एक पोखरि पानि


                       🌫️
     खेत पथार तं एक पोखरि पानि
     पी जा सकैये,मनुक्ख बुते हेतैक
     पोखरि पी लेब?पीअल तं ठीके   
     नहिं हेतैक मुदा ओकरा बुतें  
     पोखरि सुखा देल हेतैक।
                     🌿🌿
              (उचितवक्ता डेस्क)
                   गंगेश गुंजन

आदमी को छोड़ना जिस दिन आ जाएगा


      आदमी को जिस दिन छोड़ना आ
      जाएगा,सभी पड़ोस में रौनक़ भी   
      फिर लौट आएगी।
                         🌸
               (उचितवक्ता डेस्क)
                    गंगेश गुंजन

Friday, July 5, 2019

शहर में दोस्ती ।

                        
                       🍂
            🍂
    हम बड़े नाज़ से निकले थे पहन
    कर इसको।
    शहर में दोस्ती तो अब चलन से 
    बाहर थी।
                        🍂
                   गंगेश गुंजन
    

Thursday, July 4, 2019

सी बी आई अंतर्रात्मा !

       अंतर्रात्मा खांटी सी.बी.आई.है ! इससे सतर्क रहना चाहिए।जीवन में दाग़ नहीं लगेगा!
                       🌒
              (उचितवक्ता डेस्क)
                   गंगेश गुंजन

Monday, July 1, 2019

फ़ित्रतन मैं मिटा दूंगा उसको

                      🌻
     आदतन फ़ासले बनाएगा वो।
     फ़ित्रतन मैं मिटाऊंगा उसको।         
                      🌾
                 गंगेश गुंजन

यार्ड में खड़े रेल-डब्बे

                  🌿🌸🌿

  कौशल,दक्षता और अवसर के बिना
  मेधा-प्रतिभा और बुद्धिमत्ता सभी,
  बिना इंजन की प्रतीक्षामें किसी यार्ड 
  के खड़े रेल-डिब्बों के‌ समान हैं।        
                  🌿🌸🌿
            (उचितवक्ता डेस्क)
                 गंगेश गुंजन