Sunday, April 15, 2018

ज्ञानढीठों का यह वर्चस्व-काल है !

ज्ञानढीठ के समय में हमलोग
*
अब तो मुझे लगने लगा है कि किसी भी समाज जीवन की प्रगति में वास्तविक अवरोधक तत्व होते हैं समाज के ज्ञानढीठ लोग ! जहां कि साधारण लोगों का मार्ग प्रकाशित होने लगता है या कभी प्रशस्त हो भी जाता है और उनके चलने योग्य हो जाता है कि तभी देश में कोई न कोई चुनाव आ जाता है ! देश का ओजस्वी लोकतंत्र जागता है और ताक में बैठे 'ज्ञानढीठ लोग' अपनी राजनीति,दलीय दृढ़ता,अनावश्यक बौद्धिकता में जनसाधारण लोग के रास्ते की रोशनी बंद कर देने का काम करते हैं। वैसे लोग साधारण जन के कदम आगे बढ़ने देना नहीं चाहते। यह काम भले ही तथाकथित विचारधारा,जीवन दर्शन,राजनीतिक जातीय या दलगत का जो भी हो या संप्रदाय,भाषा-क्षेत्र जीवन के किसी भी क्षेत्र ! सभी जगह समान रूप से सक्रिय हैं ये लोग !
ज्ञानढीठों का ही वर्चस्व है। जनजीवन तो रोजमर्रा की समस्याओं और उलझनों में ही इतना दबा रहता है कि उसका स्वविवेक भी बहुत सहजता से ऐसे बहकावे में आ जाता है। इसके फलस्वरूप जो थोड़ी सुविधा उनके जीवन में उपलब्ध भी है उससे भी उन्हें वंचित कर देता  है। ज्ञानढीठ मात्र अपना अपना मार्ग साफ करता है।

गंगेश गुंजन।९.४.’१८.