Friday, September 22, 2023
ग़़ज़लनुमा : दिल आया उपकार किया
Tuesday, September 19, 2023
ग़ज़लनुमा : दरिया की तो थी कुछ और
•📔•
दरिया की तो थी कुछ और
साहिल की फ़ितरत कुछ और।
पांँवों में लिपटी राहों की,
क़दमों की क़िस्मत कुछ और।
बदकारी के अपने जलवे
सहकारी हिम्मत कुछ और।
बर्पा थी बदनामी ऊपर
सच को थी ज़िल्लत कुछ और।
मंज़िल मिल जाने की अपनी
दिक़्कत रहगुज़री कुछ और।
ख़ासी थीं वो बदक़िस्मतियाँ
पर ख़ुशक़िस्मत की कुछ और।
कोरे काग़ज़ का काग़ज था
लिखी इबारत की कुछ और।
कामयाब क़िस्से की अपनी
नाकामे हसरत कुछ और।
लिखे रह गये बार-बार ख़त
मिलने की क़ुदरत कुछ और।
उपजाते अनाज खेतों की
इन्साँ की मिहनत कुछ और।
ज़ंजीरों की अपनी ताक़त
बाज़ू की ताक़त कुछ और।
।📔। गंगेश गुंजन। #उचितवक्ताडेस्क।
Sunday, September 10, 2023
ग़़ज़लनुमा : जज़्बात भुनाते हो और ख़्वाब बुनाते हो
❄️❄️❄️❄️❄️❄️❄️❄️❄️❄️❄️
जज़्बात भुनाते हो और ख़्वाब बुनाते हो गाये हुए गाने गा इस तरह रिझाते हो। • हो क्या गया है उनको क्यूंँ पूछ न आते हो तुमकोभी क्या हुआहै क्याहै कि छुपातेहो
•
जाते कहीं हो आकर कुछ और बताते हो
तब भी है मुबारक कि महबूबको भाते हो।
•
लाशों की इबारत में तारीख़ लिखाते हो
कितने बड़े हुए तुम तेवर ये दिखाते हो।
•
फिर से वही वही सब फिर स्वप्न दिखातेहो
नित नई बिसातें यार, कम्माल बिछाते हो।
•
ये बादलों की टिक्की अच्छी तो लगती है पावस की ऋतुके इस मंज़र से लुभाते हो।
•
बाक़ी अभी समझ है पहचानती है जनता
दीये उसी झांँसे के अबके भी जलाते हो।
•
माहौल सिरजते हो मौक़े उगाहते हो
लो ढेर मुबारक जो राजा को सुहाते हो।
•
गंगेश गुंजन #उचितवक्ताडेस्क।
Wednesday, September 6, 2023
अगर्चे चाहता था हमरो : ग़़ज़लनुमा
। 📔।
अगर्चे चाहता तो था हमको
कभी बोला नहीं मगर इसको।
यूँ तो ख़ुद ख़त थीं वो आँखें
लिखा न,ज़ुबाँ से कहा मुझको।
कहाँ हों ये बयाँ दुश्वारिए दिल
मिले जो दोस्त उस-सा जिसको।
भेजता बुत ही कर क्या जाता
आदमी कर क्या मिला रब को।
डरे हैं यूँ फ़रेब से गुंजन
देखने लगे हैं डर कर सब को।
🌼
गंगेश गुंजन #उचितवक्ताडेस्क। ०६.०९.'२३.