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जज़्बात भुनाते हो और ख़्वाब बुनाते हो गाये हुए गाने गा इस तरह रिझाते हो। • हो क्या गया है उनको क्यूंँ पूछ न आते हो तुमकोभी क्या हुआहै क्याहै कि छुपातेहो
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जाते कहीं हो आकर कुछ और बताते हो
तब भी है मुबारक कि महबूबको भाते हो।
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लाशों की इबारत में तारीख़ लिखाते हो
कितने बड़े हुए तुम तेवर ये दिखाते हो।
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फिर से वही वही सब फिर स्वप्न दिखातेहो
नित नई बिसातें यार, कम्माल बिछाते हो।
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ये बादलों की टिक्की अच्छी तो लगती है पावस की ऋतुके इस मंज़र से लुभाते हो।
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बाक़ी अभी समझ है पहचानती है जनता
दीये उसी झांँसे के अबके भी जलाते हो।
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माहौल सिरजते हो मौक़े उगाहते हो
लो ढेर मुबारक जो राजा को सुहाते हो।
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गंगेश गुंजन #उचितवक्ताडेस्क।
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