Thursday, March 21, 2024

होने में

°°              होने में
होना ही पर्याप्त नहीं होता। राजनेता और विचारक ही नहीं,कितने कवि तक को जाग्रत और क्रान्तदर्शी लगने के लिए दिखते भी रहना पड़ता है- अनवरत।सामाजिक चेतना और परिवर्तन कामी मन मिज़ाज और जुझारूपन के कुछेक आक्रोश उद्घोष के शब्दों का बार-बार प्रयोग करते रहना पड़ता है।मंचों पर दुहरानी पड़ती हैं - परिवर्तन के लिए सामाजिक प्रतिबद्धताएँ। बाँधकर दिखानी ही पड़ती हैं-सामूहिक मुठ्ठियाँ लाल-लाल आँखें।                                                🔥
                 गंगेश गुंजन।                                     #उचितवक्ताडेस्क।

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