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दिल का वो भी क्या आलम था
क्या आलम है दिल का ये भी !
धरती पर अब क्या धरती है
तब यह धरती क्या धरती थी।
वो गंगा तब क्या गंगा थी
अब कैसी हैं ये गंगा जी।
बचा हुआ शायद हो मेरा
पटना भागलपुर औ राँची।
किन ख़्वाबों में रचे-बसे हो
तुम भी ना तुम भी गुंजन जी।
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गंगेश गुंजन #उचितवक्ताडेस्क।
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