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. अभी जो सबसे बड़ी ख़बर निकल कर सामने आ रही है…
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आजकल सौ पचास ख़बरें ही नहीं सौ दो सौ ‘सबसे बड़ी ख़बर ही निकल कर आती है।’ कोई साधारण या छोटी ख़बर तो होती ही नहीं। इतने बड़े देश के विस्तारसे दिल्ली पहुंँचते-पहुंँचते ख़बर सबसे बड़ी बन कर सामने आ जाती है। एंकरों के श्रीमुखों से बिहार के ककोलत और झारखण्ड के हुन्ड्रू झरने की तरह छल छल नि:सृत होने लगती है।
ख़बर फिर भी एँकर को वह ख़बर उतनी बड़ी बनती हुई लगती तो एंकर गण गला फाड़ू आवाज़ के आह्वान से उसे बड़ा बना कर ही छोड़ती / छोड़ते हैं।
तो इन तार सप्तक वाले समाचार वाचकों ने क्या सोच लिया है ?
बहुत जी जलता है तो अब कभी कभी शक़ भी होता है कि- आपलोग कहीं विदेशी कान मशीनों की कम्पनियों के लिए मॉडलिंग तो नहीं कर रहे हैं ? पगार तो, सुनते हैं आपलोगों को अच्छी ख़ासी मिलती है !
आपलोगों ने अच्छे भले मेरे इतने सुरीले कानों की कैसी दुर्गत कर डाली है,मेरी ही नहीं मेरी तरह का टीवी-निर्भर एक पूरा का पूरा लाचार समाज है जो दिनानुदिन और बज्र बहिर हो रहा है अतः सिर्फ़ अपने लिए ही नहीं, इस सामूहिक हित में आज श्राप देता हूँ कि आपलोगों का अगला जनम
पुराने ज़माने के ग्राम-कोतबाल में हो ताकि भर रात गांँव भर ‘जागते रहो-जागते रहो’ चिकरते-बौआते बीते…
गंगेश गुंजन #उचितवक्ताडेस्क।
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