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मैं कोई अख़बार नहीं हूँ
वो चौथा व्यापार नहीं हूँ।
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सब कुछ छूटा अभी नहीं है
बिखरा जन आधार नहीं हूँ।
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दह बह गये तुम्हें लगता है
कोशी का,घर-द्वार नहीं हूँ।
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जाती-आती-जाती रहती
मैं वो भी सरकार नहीं हूँ।
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जनता का हूँ उसके घर में
नेता के दरबार नहीं हूँ।
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सधे हाथ में है लगाम भी
नया नहीं अब वो सवार हूँ।
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इतना रह कर महानगर में
वंचित टोला,गांँव-जवार हूँ।
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गंगेश गुंजन #उचितवक्ताडेस्क।
Monday, January 1, 2024
मैं कोई अख़बार नहीं हूँ : ग़ज़लनुमा
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